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________________ १६२ त्रिलोकसार पापा : १५ दिशाओं में बिल संख्या चार अधिक होने के कारण पूर्व में जो पृथक स्थापित किये गये थे, उन को मिला देने पर ( ३३६४४ )-३४० श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या प्राप्त होती है। ( यह मध्य धन है ) समीकरण ( सर्वत्र समान ) करने के अभिप्राय से सर्व पटलों में अंबद्ध बिलों को समान संख्या मान ली गई है। यदि १ पटल में ३४० श्रेणीबद्ध बिल हैं, तब १३ पटलों में कितने होंगे? इस प्रकार राशिक द्वारा ३४० को प्रथम पृथ्वी के इन्द्रक विमानों की संख्या १३ से गुणा करने पर ( ३४.४१३ ) - ४४२० प्रथम पृथ्वी के श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या प्राप्त हो जाती है। नोट:-प्रथम पृथ्वी में १३ पटल हैं। प्रत्येक पटल में एक एक इन्द्रक बिल है, अत: इन्द्रक बिल भी १३ हैं । १३ से गुणा करने के लिए इन्द्रक बिल प्रमाण से गुणा करने के लिए कहा गया है। इसी प्रकार वित्तीयादि पध्वियों में भी श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या प्राप्त कर लेना चाहिए । प्रथम पृथ्वी के प्रथम एवं अन्तिम पटछ के इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक मिलों का चित्रण प्रथम पृथ्वी के प्रथम इन्द्र का परिवार प्रथम पृथ्वी के अन्तिम इन्द्र क का परिवार २ .. ३६....... 19:२४ ..... : EDIAS KARO -: PhD/CH 6.8yean2- 11 विक्रान्त इन्द्रका 73 लाख S ... . . . . HT.. . ५५लाख 1 - .......... A . 14............SEI EE........... . . : . : 070 : ०९:MOD
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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