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गाथा। १६५ सोशसामान्याधिकार
१५७ पटलेषु १३ कियम्ति स्युरिति राशियन समुत्पन्मगुणकारेण पृथ्वीनाप्रमाणेन तारते पुढविषणं पृष्धोगतमणीयममारणं स्यात् ४४२०॥ एवं हितोयाविषु पृथ्वीविभरिगवडप्रमाण मानेतम्यम् ॥१५॥
अन्य प्रकार से समूलन धन निकालने का विधान:
पापा:-विवक्षित पृथिवी के इन्द्रक विलों की संख्या में से एक घटा कर आधा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसका वर्ग कर उसमें उसीका वर्गमूल जोड़ देना चाहिये, तथा आठ से गुणा कर पुनः ४ जोड़ने पर जो लम्प प्राप्त हो उसे इन्द्रक विलों की संख्या से गुणित कर देने पर विवक्षित पृथ्वी का सङ्कलित धन प्राप्त हो जाता है ।।१६।।
वि.बाप:--प्रथम पृथ्वी में १३ इन्द्रक हैं। एक कम करने पर ( १३-1 ) १२ प्राप्त हुए। प्रथम पटल में हानि वृद्धि का अभाव होने से ! कम करके चय की शलाका १२ ली गई है। चय शलाका १२ के माधे (३४)-६ हुए । प्रत्येक पटल में ८,८ श्रेणीबद्ध बिलों की हानि है, अतः चय का प्रमाण ६४८ होता है । इस प्रकार एक कम पटल संख्या के आधे में चय शलाकाओं का जोड़ प्राप्त होता है, ( यह चय धन है)। इसलिये गाया में "पद्धकयं" 'आधा किया गया' ऐसा कहा गया है।
यही पर दिशाओं में से सर्वत्र चार विमान कम करके पृथक् स्थापित करने चाहिए । इस प्रकार चारों दिशाओं में से एक एक विमान कम करने पर प्रथम पृथ्वी के अन्तिम पटल की प्रत्येक दिशा व विदिशा में विमानों की संख्या ३६ प्राप्त होती है । जो १२ के आधे ६ का वर्ग )
दिशा विदिशा माठ है, अत: सर्व दिशाओं और विदिशाओं में ३६४८ विमान संख्या प्राR होती है । यह आदि धन है ) । सर्वत्र अर्थात प्रत्येक दिशा व विदिशा में ३६.३६ समान संख्या को देख कर गाथा में "वग्गिय च" अर्थात् १२ के आधे ६ का वर्ग किया गया, ऐसा कहा गया है।
आदि धन ( ३६ ४८ ) में, ३६ के वर्गमूल (६) को चय शलाका प्रमाण करके अर्थात् ६ को से गुणित करके, [ ६४६ ( चयं धन ) ] जोडना चाहिए । आदि धन ( ३६ ४८ ) में गुणकार है
और चयं शलाका ( चय धन ) ६४८ में भी गुणकार ८ है, अत. आदि धन के ३६ में चय गलाका के ६ जोड़ देने से ( ३६+६)-४२ हो जाते हैं ।
दिशा--विदिशा ४.४ अर्थात् ८ हैं, अत: आठ गुणकार कहा गया है। घय शलाका ( चय बन) ६x८ को आदि धन ३६४८ में जोड़ने पर ४२ का गुणकार = प्राप्त होता है. अत. से ४२ को गुणित करने पर दिशा विदिषामों में श्रेणीषव बिलों की संख्या (४२४८)- ३३६ प्राप्त होती है।