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________________ त्रिलोकसार पाया। १६५ विशेषाः -पद १३ है, इसमें से १ घटाने पर १२ अवशेष रहते हैं, उन्हें २ से भाजित करने पर ६ रघ प्राप्त हुआ । इस ६ को उत्तर अर्थात् चय (८) से गुरिणत करने पर ४८ प्राप्त होते हैं । इनको बादि धन २९२ में जोड़ने पर मध्य धन ( २९२ + ४८ )=३४० प्राप्त हुआ। इसे पद (१३) से गुणित करने पर ( ३४०४१३ )=४४२० प्रथम नरक के कुल बिलों की संख्या प्राप्त होती है। इसी प्रकार दिलोयादि विषयों में भी जानना चाहिये । यथा. पृथिवियो-पद-१ = २-४ चय- + मुख- ४ पद = श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण प्रथम पृ०-१३-१-१२२-६४-४८ + २६२ = ३४०४१३-४४२० घणीव बिलों का प्रमाण दि० पृथिवी-११-१-१०-२-५xt=४०+२०४-२४४४११=२६८४श्रेणीबद्ध बिलोका प्रमाण तृतीय पृथिवी-९-५ =८:२-४४८-३२+ १३२१६४ ५ ६ = १४७६ श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण चतुर्थ प्रथिवी-७-१-६२-३४८- २४ +७६=१००४७=७०. श्रणीबद्ध बिलों का प्रमाण पश्चम पृथिवी-५-१= २-२४=१६१ -५२५-२५ बिलों का सामान षष्ठ पृथिवी-३-१=२-२=1x८०+१२ = २० x ३= ६. श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण सप्तम पृथिवी-१ श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण अथ प्रकारान्तरेण सहुलितानयनमाह पुढविदयमेगूण अद्धकयं वगियं च मूलजुदं । अद्वगुण चउसहितं पुरविंदपताडियं च पुढ विधण ॥१६५ पृथ्विीन्द्रकमेकोन अकृतं वगितं च मूलयुक्तम् । अष्टगुणं चतुः सहितं पृथ्वीन्द्रकताडितं च पृथ्वोधनम् ।।१६५।। पुढवि। पृथ्वीनकसंख्या १३ एकोना १२ संस्थाप्य अनेन हानिपुरधोरभावाद प्रथमपटले पयशलाका प्ररूपिता। प्रवकर्य म कृता यशलाका ६८ स्थापयेत् । प्रनेन सवंत्र पटलेषु पोनगमकाधमात्राचयालाकाः समीकृता जाता इति पढमायमित्युक्त । वग्गियं च पत्र गितेषु सर्वत्र रूपचतुष्यमपनीय पूथक संस्थाप्य अपमोतदिग्विदिग्गतसंख्या ३६८ सर्वत्र समाना। इसमेवादिधनं । एवं सर्वत्र सदृशमेवावतिते। इवं दृष्ट्या गितं घेत्युक्त । मूलजुदं माविषनवर्गमूल प्रमाणा चयशलाकया ६८ युतं प्रातिपनं ३६।८ गुणकारयोः साम्यात माविधने ३६ चयशलाका ६ संयोग्या ४२ मदुगुणं विग्यिविगतगुणकारा केन पयशलाकायुताबि ३६६ भनं ४२ गुरपयेत् ३३६ । पत्र पाउसाहिब पूर्व पृथस्थापितविगताधिकरूपचतुष्टयं मेलये। ३४० पुठविवयताबियं पइवं समीकरपणात सर्वषु पाटलेषु समानमिति कृत्वा एकस्मिन् पटले । एतावन्ति पिण्वानि पनि स्युः ३४० तथा प्रयोगमा
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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