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________________ कोकसामान्याधिकार है। जैसे :-३७+३६-७३४४-२९२ मुख हमा। पदमें से एक घटाकर चय से गुणित कर जो रूप आवे उसे मुग्न में जोड़ने से भूमि और भूमि में से घटा देने पर मुख का प्रमाण प्राप्त होता है । जैसे:१३-१=१२४८ चय-१६ । भूमि ३८५-९६२९२ मुख और मुख २९२+९६-३८८ भूमि प्राप्त हुई। भूमि पौर मुख को जोड, बाधा कर उसे पद से गुणा कर देने पर सङ्कलित पद धम प्राप्त हो जाता है। जैम: भूमि मुख ३५०+२९२=६८०-२=३४.४ १३ = ४४२० प्रथम पृथिवी के थेणीबद्ध बिल। २८४ + २०४=४८८:२=२४४४११ - १६८४ द्वितीय पृथिवी के श्रेणीबद्ध बिल । १६६+१३२=३२८ २=१६xx = १४७६ तृतीय पृथिवी के श्रेणीबद्ध मिल। १२४+ ७६-२००-२=१००४ ७-५०० चतुर्थ पृथिवी के घेशीवज बिल 1 ६८+ ३६ - १०४+२= ५२४ ५=२६० पत्रम पृथिवी के अंणीवद्ध बिल । २८+ १२= ४०:२- २०४ ३८ ६. षष्ठ पृथिवी के श्रेणीबद्ध बिल । = ४ समम पृथिवी के भणीबद्ध बिल। इन्द्रक सहित घणीबद्ध बिलों की संख्या भी इसी प्रकार निकाल लेना चाहिए । प्रथम पृथ्वी के इन्द्रक एवं धरणीबद्ध ४४३३, द्वितीय पृथ्वी के २६९५ इत्यादि । ___ सातों परिवयों के इन्द्रक और श्रेणीचड़ों की सामूहिक संख्या निकालने के लिए मुख ५ और भूमि ३८६ है, अतः ३८९+५= ३९४-२=१९७४४ - ९६५३ इन्द्रक+ गीबद्ध । इन्द्रकोणाबद्धप्रमाणानयने सङ्कलितसूत्रमाह पदमेगणबिहीणं दुमाजिदं उतरेण संगुणिदं । पभवजुदं पदगुणिदं पदगणिदं तं विज्ञाणाहि ।।१६४|| पदमेकेन विहीन विभतं उनरेगा सच गुरिएतं । प्रभवयुत परिणतं पदगणितं तत् विजानीहि ॥१६४।। पद । प १३ एकेन विहीन १२ द्वाभ्या भल' ६ उत्तरेण - समलित प्रभव २९२ पुतं ३४० १५ १३ गुणितं ४४२० तसङ्कलितपनगणितमिति विजानीहि । एवं विसीयावि सर्वपृथिव्यामानेत यम् ॥१६४ ।। इन्द्रक और श्रेणीबद्ध विनों का प्रमाण निकालने लिए करण सूत्र कहते हैं--- पापा:-पदमें से एक घटाकर दो का भाग देने पर जो लम्ध्र प्राप्त हो उसमें उत्तर अर्थात चम से गुणाकर प्रभव अर्थात् मुख में जोड़कर पद से गुणा करने पर पद धन प्राप्त होता है ||१६||
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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