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त्रिलोकसार
भाषा । १३ विशेषा-प मा पृथ्वी के हिम नामक प्रथम इन्द्रक बिल को चारों दिशाओं में ४,४ श्रेणीबद्ध बिल हैं। उनमें प्रथम प्रथम श्रेणीबद्ध बिलों की क्रमशः नीला, पङ्का, महानोला और महापका संज्ञाएं हैं । सप्तम माषत्री पृथ्वी में अयधिस्थान नामक एक ही इन्द्रक बिल है और इसकी चारों दिशाओं में क्रमशः काल, रौरव, महाकाल और महारौरव नाम के कुल ४ ही श्रेणीबद्ध बिल हैं ।
अथ प्रतिपृथ्वि प्रथमपटलधन धृत्वा चरमपटलधनमानेत चरमपटलधनं घृका प्रथमपटलधनमानेतु' वा गाथामाह
वेगपदं चयगुणिदं भूमिम्हि मुहम्मि रिणधनं च कर । मुहभूमीज़ोगदले पदगुणिदे पदवणं होदि ।।१६३।।
व्येकपर्व चयगुणितं भूमौ मुखे ऋणं धनं च कृते ।
मुखमियोगदले पदगुणिते पदघनं भवति ।। १६३।। वेगपर्व । प्रथमपटल विग्विागत मेंरिणब Te+४८ मेलपिस्या १७ सतुभिः सह गुरिणते ३८८ भूमिभवति । चरमपटल विग्विदिग्गतषेरिणबद्ध । ३७+३६ मेलयित्वा ७३ चतुभिगुंरिणते २९२ मुखं स्यात् । सत्र मूमौ ३८८ मुखे घ २९२ यथासंख्येन विगतकपर्व १२ सय ८ गुणितं ९६ ऋणे बने पकृते २९२२३८८ मुखभूमी स्यातां । तयोोंगे ६८० वलिते ३४० पट १५ गुणिते ४४२० प्रथमपृथ्वीश्रेरिणबहसलिलपवनं भवति । यकसहितमेवामानेत यं ४४३३ । समस्तपृथ्वीमेणोक्शानयने येवमेवानेतन्यम् । तत्र मुखं ५ भूमिः ३८६ ॥१३॥
अब प्रत्येक पृथ्वी के प्रथम पटल का धन रखकर अन्तिम पटेल का धन लाने के लिए तथा अन्तिम पटल का धन रख कर प्रथम पटल का धन लाने के लिए कहते हैं
पावार्थ:-- एक कम पद का चय में गुणा कर जो लब्ध प्राप्त हो उसे भूमि में में घटा देने पर मुख की प्राप्ति होती है तथा मुख में जोड़ देने से भूमि की प्राप्ति होती है। मुख और भूमि को जोड़कर आधा करने से जो लब्ध प्राप्त हो उसमें पदका गुणा करने में पद धन की प्राप्ति हो जाती है ।।१६३।।
__विशेषार्थः-स्थान को पद' या गच्छ कहते हैं । अथवा जिन स्थानों में समान रूप से वृद्धि या हानि होती है, उन्हें पद या गच्छ कहते हैं । अनेक स्थानों में समान रूप से होने वाली वृद्धि अथवा हानि के प्रमाण को धय या उत्तर कहते हैं। आदि और अन्त स्थान में जो हीन प्रमाण होता है उम मुख या प्रभव तथा अधिक प्रमाण को भूभि कहते हैं । पद में से एक घटाकर चय से गुरिणत कर जो लम्ध आवे उसे मुख में जोड़ने से भूमि और भूमि में से घटा देन पर मुख का प्रमाण प्राप्त होता है।
प्रथम पृथ्वी के प्रथम पटल की दिशा विदिशा के श्रेणीबद्ध बिलों को ओड़कर चार में गुर। करने पर भूमि होती है। जैसे : ४९+४८-९७xx=३८८ ( भूमि ), तथा इसी पृथ्वी के अन्तिम पटल की दिशा विदिशाओं के श्रेणीबद्ध बिलों को जोड़कर चार से गुगिन करने पर मुख प्राप्त होता