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पापा : १६१-१२ छोकसामान्याधिकार
१३ विशेषा:-द्वितीय वंशा पृथ्वी के तत नामक प्रथम इन्द्रक बिल को चारों दिशाओं में क्रमशः ३६.३६ श्रेणोबद्ध बिल हैं। उनमें से प्रथम प्रथम श्रेणीबद्धों के कम से अनिच्छा, अविद्या, महानिच्छा और महाविद्या नाम है, तथा तृतीय मेघा पृथ्वी के तप्त मामक प्रथम इन्द्रक को चारों दिशाओं में २५, २५ प्रेणीबद्ध हैं। उनमें से प्रथम प्रथम श्रेणीबद्धों के कम से दुःखा, वेदा, महादुःखा और महावेदा नाम हैं।
आराए दु णिसिहागिरोहअणिसिहमहणिरोहा य । समग णिरुद्धविमद्दण महपृथ्वणिरुद्धमहविमद्दणया ॥१६१॥
आरायां तु निगृष्टा निरोधा अनिसृष्टा महानिरोधाप।
तमके निवद्धविमदनअतिपूर्वनिरुद्धमहाविमर्दनाः ।।१६१॥ पारराए । मम्मनापा: मारेन के तु निसृष्टा निरोधा अनिस्टा महानिरोषा । परियामा समोनके नियषिमन प्रतिनियमहाविममहाश्च ॥१६१०
पापा:---आरा इन्द्रक की चारों दिशाओं में क्रमश. निसृष्टा, निरोधा, अनिसृष्टा और महानिरोषा नामक घणीबद्ध हैं । तथा तमका इन्द्रक को चारों दिशाओं में प्रमशः निरुव, विमर्दन, अति निकल और महाविमर्दन श्रेणीबद्ध बिल हैं ।।१६१।।
विशेषाय-- चतुर्थ अॅना पृथ्वी के आरा नामक प्रथम इन्द्रक की चारों दिशाओं में क्रमशः १६,१६ श्रेणीबद्ध हैं, उनमें प्रथम प्रथम श्रेणीबद्धों के क्रम से निसृष्टा, निरोधा, अनिसृष्टा और महानिरोधा नाम है । पखम अरिष्टा पृथ्वी के तमका नामक प्रथम इन्द्रक की चारों दिशाओं में ९,९ श्रेणीबद्ध बिल हैं, उनमें प्रथम प्रथम श्रेणीबद्धों के क्रम से निरुद्ध विमर्दन, अतिनिबद्ध और महा विमर्दन नाम है।
हिमगा णीला का महणील महादिपंक सत्तमये । पढ़मो कालो रउरवमहकालमहादिग्उरषया ||१६२।।
हिम के नीला पड़ा महानीला महादिपक्षा सप्तम्याम् ।
प्रथमः काल. रोरवमहाकालमहादिरोरवाः ॥१६॥ हिममा । मघध्याः हिमकेन्द्र के नौला पङ्का महानीला महापसा च । सप्तम्या प्रथमः काल: रोरबमहाकासमहारथाः ।।१२।।
पायार्थ:-हिम इन्द्र क बिल की चारों दिशाओं में नीला, पङ्का, महानीला और महापका श्रेणीबद्ध है । तथा सप्तम पृथ्वी के अवधिस्थान इन्द्रक की चारों दिशाओं में क्रमश: काल, रौरव, महाकाल और महारौरव नाम के श्रेणीबद्ध बिल हैं ॥१२॥