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। ३२ ] गा० १२ में फ्ल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रत संगुल, घनांगुल, जगच्छु णी, जगत्प्रतर और लोक इन पाठ उपमा प्रमाणों के नाम दर्शाये गए हैं। व्यवहार पल्प, उद्धार पल्य मौर अापल्य के भेद से पल्य तोन प्रकार का है ( गा.६३) । एक योजन लम्बे, एक प्रोजन चौड़े और एक ही योजन गहरे कुण्ड को विशिष्ट मेढ़े ( गा.१४) के अविभागी रोम खण्डों से भरने पर, न रोम शरडों के द्वारा व्यवहार पल्य प्राप्त होता है। तथा प्रत्येक सौ वर्ष बाद एक एक रोम निकालने पर जितने काल में सम्पूर्ण रोम समाप्त हो उतने काल के समयों की संख्या व्यवहार पल्य के समयों की संख्या है। इस व्यवहार पत्य से संख्या का माप किया जाता है ( गा.९३-४)।
__ यतदार पन्य शसंन्यास का के मगों को बाशि = उद्धार पल्य (गा० १०० ) । इस उद्धार पल्य से द्वीप समुद्रों का माप किया जाता है।
___उद्धार पल्य राशि४ असंख्यात वर्षों के समयों की राशि = अदा पल्य ( गा० १०१)। इससे को स्थिति का माप किया जाता है।
व्यवहार पख्य x १० कोड़ाकोड़ी--एक व्यवहार सागर । उद्धार पल्य x १० कोड़ाफोड़ी- एक उद्धार सागर । अद्धा पल्य x १. कोडाकोढ़ी = एक अद्धा सागर । "
मा० १०३ और १०४ में लवण समुद्र को सागरोपम संज्ञा की अन्वर्थता दिखलाने के लिए कुण्डों आदि का प्रमाण निकाला गया है।
गुण्य मान और गुणकार के अघच्छेदों को जोड़ने से लधराशि के अर्धच्छेद प्राप्त होते हैं तथा माज्य के अधंच्छेदों में से भाजक के अर्घच्छेद घटाने पर लब्घराशि के अर्धच्छेद होते हैं ( मा० १०५१०६ )। विरलन शशि में देय राशि के अच्छेदों का गुणा करने से उत्पन्न (लब्ध ) राशि के अर्धच्छेद प्राप्त हो जाते हैं ( गा० १०७) विरलन राशि के अच्छेयों को देय राशि के अर्घच्छेदों के अर्धच्छेदों ( वगंशलाकाओं) में मिलाने से विरलन एवं देय के द्वारा उत्पन्न हुई राशि की धर्मशलाकाओं का प्रमाण होता है (गा० १०८" मूलराशि के बर्धछेनों से अधिक अवच्छेदों द्वारा गुणकार राशि उत्पन्न होती है (.११.)। मुल राशि के अच्छेवों से हीन अधच्छेदों द्वारा पागहार राशि उत्पन्न होती है । गा० १११।।
सूच्यंगुल:-इसी शास्त्र के २३ पृ० पर परमाणु से लेकर अंगुल तक का जो माप दिया गया है उसो भंगुन्ठ को सूच्यंगुल या उत्सेधांगुल या व्यवहारांगुल भी कहते हैं । इस सूच्यंगुल में देव, मनुष्य, तिमंच एवं नारकियों के शरीर की ऊंचाई का प्रमाण, देवों के निवास स्थान और नगरादि का प्रमाण मापा जाता है (पा )। अथवा:--पल्य के जितने अर्धच्छेद होते हैं उतनी वार पल्य का परस्पर में गुणा करने से जो प्रमाण प्राप्त होता है उसे सूच्यंशुल कहते हैं । जो एक अंगुल ल क्षेत्र में जितने प्रदेश है उतने प्रमाण है । { गा० ११२)