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लोकसामान्याधिकार
रभाग में १६ पृथ्वियां हैं। उनके नाम दो गाथाओं द्वारा कहते हैं
गावार्थ:- १ चित्रा २ वा ३ वैडूर्या ४ लोहिता ५ मतारकल्पा ६ गोमेदा ७ वाला ज्योतिरसा ९ जना १० अञ्जनमूलिका ११ अड्डा १२ स्फटिका १३ चन्दना १४ सर्वार्थका १५ वकुला और १६ शैला ये एक एक हजार योजन प्रसाद बाहुल्य वाली सह पृथ्विया है की लोक के अन्त तक गई है ।।१४७- १४८ ।।
गाथा : १४०-१५०
विशेषार्थ:- खरभाग सोलह हजार योजन मोटा है। उसमें एक एक हजार योजन मोटी चित्रा आदि सोलह पृथ्वियां हैं; इनके बीच में किसी प्रकार का अन्तराल नहीं है। जैसे किसी अपेक्षा पर्वत के भाग कर लिए जाते हैं, उसी प्रकार यहां खर भाग के सोलह भाग किए गए हैं। ये सोलह पृथ्वियाँ लोक के अन्त तक फैली हैं अर्थात् इन पुत्रियों को लम्बाई चौड़ाई लोक के समान है ।
अथ द्वितीयादीनां बाहुल्यमाह
बसीसमवीसं चडवीसं बीस सोलसड्डाणि ।
मढवीणं सहस्यमायेदि बाहुलियं || १४९|| द्वात्रिंणदष्टाविंशतिः चतुविशतिः विशति षोडणाष्टौ । अधस्तन षट् पृथ्वीनां सहस्रमानै बाहुल्यम् ॥ १४९ ॥
प्रतीस । द्वात्रिंशदष्टाविशतिः चतुविंशतिः विंशतिः षोडशाष्टौ प्रथस्तनषपृथ्वीमा योजनसहस्रस्यम् नेयम् ॥ १४६ ॥
द्वितीयादि नरक पृथ्विमों का बाहुल्य कहते हैं
गाथा: शर्करा पृथ्वी को आदि लेकर नीचे को छह पृथ्वियों की मोटाई क्रमशः बत्तीस हजार, (३२००० ) अट्ठाईस हजार ( २८०००) चौबोस हजार ( २४००० ), बीस हजार (२०००० ), सोलह हजार १६००० ) और बाठ हजार ( ८००० ) योजन प्रमाण है || १४९ ।।
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विशेषार्थ - द्वितीय शर्करा पृथ्वी की मोटाई ३२००० योजन, बालुका की २५००० योजन, प प्रभा की २४००० योजन, धूमप्रभा की २०००० योजन, तमः प्रभा की १६००० योजन और महातमः प्रभा की ८००० योजन मोटाई है।
अथ तासु स्थितपटलानां स्थानान्याह --
सप्तमधिज्मे बिलाणि सेसासु अव्यबहुलोति ।
हे वरं च सहस्सं वज्जिय पडलक्कमे होति ॥ १५० ॥ सममिति बहुमध्ये बिलानि शेषासु अन्बहुलान्तम् ।
उपरि च सहस्र वर्जयित्वा पटलकमेण भवन्ति ।। १५० ।।
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