SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिलोसार पाथा:.१४-१४८ मय तत्र प्रपमपृथिवीभेवमाह रयणप्पहा तिहा खरमागा पंकापबहुलभागाति । सोलस चउरासीदी सीदी जोयणमहस्सराहन्ला ||१४६॥ रत्नप्रभा त्रिधा खरभागा पापबहुलभागा इति। षोडश चतुरशीतिः अशीतिः योजनसहस्र बाहल्या ॥१४६।। एम। रत्नप्रभा निषा सारभागा पङ्कभागा अपहलमापा चेति योग्य तुरशीति बशीतिबोबसवाया ॥१४६॥ प्रथम पृथ्वी के भेदः जापा:---रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग हैं-खरभाग, पङ्कभाग और अपबहुल भाग । इन तीनों का बाढल्य क्रमषाः सोलह हजार, चौरासो हजार और अस्सी हजार योजन है ॥१४६।। विशेषा:-प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी खरभाग, पनुभाग और अबहुल भाग के भेद से तीन प्रकार की कही गई है। इनमें खरभाग नाम का प्रथम भाग सोलह हजार ( १६००० ) योजन मोटा, द्वितीय भाग चौरासी हजार ( ८४००० ) योजन मोटा और तृतीय भाग अस्सी हजार ( ८०...) पोजन मोटा है। घोडशभुवां संज्ञा गाथाय नाह चिचा बज्जा वेलुरियलोडिदखा ममारगल्लवणी । मोमेदा य पवाला जोदिग्सा अंजणा गवमी ।।१४७॥ अंजणमूलिय अंका फलिहा चंदण सवत्थगा बकुला । सेलक्खा य सहम्मा एगेगा लोगरिमगया ॥१४८।। चित्रा वाचा वैडूर्या लोहिताच्या मसारकल्पावनिः । गोमेशा च प्रयाला जोतिरसा अजना नवमी ।।१४७।। बञ्ज नमूलिका अङ्का स्फटिका चन्दन। सर्वार्थ का बकुला। शलाख्या च सहस्रा एकका लोकचरमगता ॥१४८।। चित्ता। चित्रा बच्चा बडा लोहिताख्या मसारस्पानिः गोमेवा च प्रवाला ज्योतिरमा सम्ममा नवमी ॥१४॥ अंजण । प्रालिका प्रडा स्फटिका चन्दना सपिंका बकुला शेलारूपा च सहनमिता । एकेका लोकवरमगता; ॥१४॥ --- . ... - .-.- -. बाहमया (०)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy