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________________ गाथा: १४२ लोकसामान्याधिकार पापा:-तनुवातवलय के बाहुल्य के नव लाख खण्ड करने पर एक खप में अषन्य प्रवगाहना वाले मिच परमेष्ठी हैं और उसी बाहुल्य के पन्द्रह सौ खण्ड करने पर उसके एक खण्ड में उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्टी विराजमान हैं ॥१४॥ अथ नदवगाहं व्यवहारं कुर्वन्नाह पणसयगुणतणुवादं इच्छियउगाहणेण पविभत्र । हारो तणवादस्स य सिद्धाणोगाइणाणयणे ।।१४२|| पञ्चशतगुणतणुवातः इच्छितावगाहनेन प्रविभक्तः । हारस्तनुवातस्य च सिद्धानामवगाहनानयने ॥१४२।। पण । पञ्चशत ५०० गुरिणत ७८७५०० सनुपात: १५७५ ईप्सितावगाहनेन प्रविभक्त हारस्सनुवातस्य च सियामामवाहनानयने । एतावत्सरहानां ६०००० एतावासु ७८७५०० ग्यवहारवशेष एकस्य कियातो वा इति सम्पास्य एतावता ११२५०० अपवर्तने जघन्याबगाहः एषमुस्कृष्टावगाहो मासण्यः । उभयत्र चतुर्गापवर्तनविषिश्व नातव्यः ॥१४॥ उस अवगाहना को ध्यबहार रूप करने के लिए -- गापा:-तनुवातवलय के वाइल्य को ५० से गुणा कर इच्छित ( जघन्योत्कृष्) मवगाहना का . भाग देने पर जो लन्ध प्रान हो उसका तनुवातवलय के बाहुल्य में भाग देने पर सिद्धों की इच्छित अवगाहना प्राप्त हो जाती है ।।१४२॥ विशेषार्थ:- तनुबातवलय का बाहुल्य नो प्रमाणाड गुल की अपेक्षा है, और सियों की अवगाहना व्यवहाराङ गुल अपेक्षा है. अतः तनुवात वलय के बाहल्य ( मोटाई) १५७५ धनुष को ५०० से गुणित करने पर ( १५४५ x ५.. ) सात लाख सत्तासी हजार पांच सौ (७८७५०० ) व्यवहार धनुषों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है । इसमें जघन्य अवगाहना धनुष का भाग देने पर ( ७१७५० प्रति ५८१५2x5 ) ३०००.० खाट प्राप्त होते हैं। जबकि ९०.००० खण्डों में ७८७५०० व्यवहार धनुष होते हैं, तब १ खण्ड में कितने धनुष प्राप्त होंगे? इस प्रकार राशिक कर 8882 को ११२५०. से अपवर्तित करने पर व्यवहार धनुप प्रमाण सिद्धों की जघन्य अवगाहना प्राप्त होती है। मिद्धों की जघन्य अवगाहना ३१ हाथ की होती है, नथा ४ हाथ का एक धनुष होता है, मत! जब कि ४ हाथ का १ धनुप होता है, तब ३३ हाथ के कितने धनुष होंगे ? इस प्रकार राशिक करने पर (ix) धनुप प्राप्त होंगे। जबकि ७८०५०० धनुष के ६००००० खण्ड प्राप्त होते हैं, तब धनुष के कितने खण्ड प्राप्त होंगे ? इस प्रकार पुन, त्रैराशिक कर (8288x2) अपवर्तित करने पर १ मण्ड प्राप्त होता है, अतः जघन्य अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी तनुवातवलय के भाग में बिराजमान हैं, यह बात सिन्च हुई।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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