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________________ त्रिलोकसार गाय।।१४३-१४४ उस्कृष्ट अवगाहना:-सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष की होती है, तथा तनुपातवलय की मोटाई १५७५ धनुष है. जिसके ७८७५०० च्यवहार धनुष होते हैं । जबकि ५२५ धनुष का खण्ड होता है, तब ७८७५०० धनुष के किनने खण्ड होंगे? इस प्रकार राशिक करने पर ( UN = १५०० खण्ड प्राप्त हुए । जबकि ७८७५०० नुष के १५७७ ग्राण्ड होते हैं, तब ५२५ धनुष के कितने खण्ड होंगे? इस प्रकार पुनः राशिक करने पर ( १९५५) १ खण्ड प्राप्त हुआ, अत: सिद्ध हुआ कि उस्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी तनुवातघलय के पय भाग में रहते हैं। अथ असनालोस्वरूपमाह लोयबहुमज्झदेसे सखे सारच रज्जुपदरजुदा । बोइसरज्जुन गा तमणाली होदि गुणणामा ।।१४३।। लोकबहमध्यदेशे वृक्षे सार इव रज्जुप्रतरयुता। चतुर्दशरज्जत्तुङ्गा त्रमनाली भवति गुणनामा ॥१४३।। लोय । लोकबहुमध्यवेशे पृचे सार घ रजुप्रतरमुता चतुवंशरज्जूतजा समालो भवति गुरणमामा । सुनकोटीयाविना सरफलमानैतव्यं - ॥१४३॥ श्रस नाली का स्वरूप.--- गामा:-लोकाकाश के बहुमध्य प्रदेशों में ( बीच में ) वृक्ष के मध्य में रहन वाले सार भाग के सहश, तथा एक राजू प्रतर से सहित चौदद्द राजू ऊंची और सार्थक नाम वाली अस नाही है ||१४३॥ विशेषाय:-लोक के बहमध्य प्रदेशों में प्रसनाली उसी प्रकार विद्यमान है जिस प्रकार वृक्ष के र छाल आदि तो उपरिम भाग है । मध्य में सारभून लकड़ो विद्यमान रहती है । यह त्रसनाली। राजू लम्बी एक राजू चौड़ी और १४ राजू ऊंची है । यहां १ राजू लम्बाई भजा और १ राजू चौड़ाई कोटि है, तथा १४ राजू ऊंचाई का नाप उत्सेध है । इन १ राजू भुजा, १ राज कोटि और १४ राजू ऊंचाई का परस्पर गुणा करने से ( १x१४१४ ) त्रस नाली का क्षेत्र फल १४ पन राजू प्रमाण प्राप्त होता है। लोक, ३४३ घन राजू प्रमाण है, उसमें मात्र १४ घन राजू प्रमाण में बस नाली है अर्थात् प्रस जीव पाये जाते हैं, शेष ३२९ घन राजू में मात्र स्थावर जीव ही प्राप्त होते हैं, बस नह मारणान्तिक एवं केलि समुद्धात वाले यस जीवों के आश्म प्रदेशों का सत्व अवश्य ३२९ घन राज में पाया जाता है किन्तु उसकी यही विवक्षा नहीं है। अथ मनाल्यवस्थभूमेदादिमाह मुरबदले सचमही उवरीदो ग्यणसरकरावालू । पंका धूमतमोमहनमप्पहा रज्जुस्तरिया ।।१४४।। मुरज बले सप्तमाः उपरितो रस्नशकरा बालुः । पला धूमतमामहातमप्रभा रर्वतरिता ११४४।। पपाद,
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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