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________________ पापा : १२९-१३० लोकसामान्याधिकार १४३ - इतः परं सिद्धफलमाह जगपदरसरभाग सद्विसहस्सेहि जोयणेहि गुण । विगगुणिमुभयपासे बाद फलं पुषवरे य !,१२९।। जगत्प्रतरसप्तभागः पछिसहस्र : योजने गुगणः । द्विकारिणतः अभयपावें वातफळ पूर्वापरयोः च ॥१२६|| जा। जगप्रसारसप्तभागः ७ षष्ठिसहस्र ६००००योजनगुणित: विक २ गुलितः उभयपार्षे पातफलं पूर्वापरयोः ॥१२॥ उपयुक्त किया करने से प्राप्त हग सिद्धफल का कथन करते है पापाचं :-- जगत्प्रतर के मातवें भाग (४) को ६० हजार योजन से गुणा करने पर जो लम्ध प्राप्त हो, उसमें दो का गुणा करने से पूर्व पश्चिम दोनों पायें भागों का क्षेत्रफल प्राप्त हो जाता है ॥१२९ विशेषार्ष:- अधोलोक के एक राजू ऊपर के पाव भागों तक तीनों पवनों की चौड़ाई (पास) १ राजू अर्थात् 'राजू है। लम्बाई जगच्छणी प्रमाण अर्थात् राजू है। यही भुजा और कोटि हैं। 'इनका परस्पर गुणा (: x) करने से जगत्प्रतर का सातवा भाग अर्थात् ' वर्ग राजू प्राप्त हो जाना है। इस { ४१ ) को ६० हजार योजन (वेध ) से गुणा करने पर ( १९४ ६० हजार ) एक पार्व भाग का क्षेत्रफल प्राप्त होता है । एक पार्थ भाग का क्षेत्रफल जगत्प्रतर - ६०००". है तो दोनों पार्श्वभागों का कितना होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर जगत्प्रतर ४६०००० ४ ७ २ अर्थात जगत्प्रतर x १२०००० क्षेत्रफल प्राप्त होता है। यहाँ ४९ जगत्प्रतर के स्थानीय है। अप दक्षिणोत्तरवातक्षेत्रफलानयनप्रकारमाह-- उदयमुहभृमिवेहो रज्जुसमचमबरज्जुसदी य । जोयणमद्विसहस्सं सत्तमखिदिदक्षिणुत्तरदो ॥१३.।। उदय मुखभूमिवेधाः रज्जुसमप्तमपज्जुश्रेण्यः च । योजनषष्टिसहन मप्तममितिदक्षिणोत्तरतः॥१०॥ ग्गय । उपमुखभूमिवेधाः यथासंग्घ्यं रणु • ससप्तमषा 5 मेग्या योजना महन' ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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