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________________ गाथा : १२६-१२७ लोकमामान्याधिकार अर्थात् १३३ योजन वाइल्य मानत प्रारणल युगरा : पु.. गग गर्गत ३: शेलन बाहुल्य आरण अच्युत मुगल का है। ए-1 = भोजन अर्थात् १२० योजन बाहुल्य गैबेयकादि का है। --- योजन अर्थात १२ योजन बाहल्य सिद्धक्षेत्र का है। অথ তাকাবানু শীমান্থ— कोसाणं दुगमेक्कं देसूक्क न लोयमिहरम्मि । ऊणधणूण पमाणं पणुवीसज्महियचारिसयं ।।१२६।। कोशामा द्विकमेकं देशोन के च लोकशिखरे। ऊनधनुषां प्रमाणं पञ्चविणाधिकचतुः शतम् ॥१२६॥ कोसाणं । होशामा हिकमेकं देशोनक १५७५ धनुष व लोकशिशारे अनपतुषां प्रमाणे । किमियुक्त पर्यावास्यधिकचतुः शतमिरयुक्तम् ४२५ ॥१२६॥ लोक के उपरिम भाग में पवनों का बाहुल्य प्रकट करते हैं पापा:-लोक के शिखर पर पवनों का प्रमाग क्रमशः २ कोश. १ कोश और कुछ कम एक कोश है। यहां कुछ कम का प्रमाण ४२५ धनुष है ।।१२६।। विशेषाय:-लोक के अग्रभाग पर घनोदधि वातवलय को मोटाई २ कोश, धनवातवलय की १ कोश और तनुवातवलय की कुछ कम एक कोश है। यहाँ कुछ कम का प्रमाण ४२५ धनुष है। अर्थात २००० धनुषों में से ४२५ धनुष कम कर देने पर (२००० - ४२५ = ) १५७५ धनुष शेष रहने है । पही तनुवातवलय का बाहुल्प ( मोटाई) है। अम लोकाधस्तन वायुक्षेत्रफलमानयनाह लोयतले वादनये वाइम्लं सटिजोयणसहस्सं । सेटिजकोडिगुणिदं किंचूर्ण राउवेलफलं ।।१२७।। लोकतले बातये बाहुल्य पष्ठियोजनमहस्रम् । श्रेणिभुजको टिगुग्गिातं किञ्चिदूनं वायुक्षेत्रफलम् ॥१२७॥ लोपतले । लोकतले वातत्रये बाहुल्यं पनियोजनसहन ६००००, अंरिणभन कोटि ७ गुणित == ६०००० पूर्शपरेण समचतुरन्त्रत्वाभावात निश्चिम्यूनवेर्ष वायुक्षेत्रफलं - ६०००० स्यात् ॥१२७॥ लोक के नौने तीनों पवनों से अब मद्ध क्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिए कहते हैं माया :लोक के नीचे तीनों पवनों का बाहल्य ६०००० योजन तथा लम्बाई और चौड़ाई जगणी प्रमाण है । पवनों को यही लम्बाई और चौदाई जगन्छेणी की भुजा एवं कोटि है अतः
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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