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त्रिलोकमार
गाथा :१.५
- अर्थात् शेष रहा । इसे पूर्वक्ति में मिलाने से (+)- ३ अर्थात् ! मान हुआ, अनः चतुर्थ पृथ्वी के निकट तीनों पचनों का बाहुल्प ( १३ + १)- राजू प्रमाण है।
पून: १४ में में निकाला और उस एक मैं में हानि का प्रमाण घटाने पर :- ).. ३ अर्थात् शेष रहा । इम : को (१४ - १) = १३ में मिलाने पर तृतीय पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १३, योजन है । पुनः पूर्वोक्त क्रिया करने से शेष रहे । इन्हें उपयुक (१३१ -१) -- १२% के ? में मिला देने में ( 3+ :) = : प्राम हुये, अत: द्वितीय पृथ्वी के निकट तीनों पर नों का माहप १२३ योजन है । पुन:
सोया करने शेष रहे, इन्हें ३ में मिलाने से (६.) अर्थात १ प्राप्त हुआ. अत: मध्य लोक के निकट तीनों भवनों का बाहुल्य (११+१) - १२ भोजम प्रमाण है।
__ अथवा :-- मातम पृथ्वी के निकट तीनों परनों का बाहुल्य (७+५+ ४) = १६ योजन था; अतः १६ योजन में से हानि का प्रमाण घटाने पर निम्न बाहल्य प्राप्त हुआ - - -
१४ - १ योजन ! अर्थात् ६०वीं पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १५, योवन है। - * ¥ योजन । अर्थात् ५वीं पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १४३ पोजन है । "- = ६५ = योजन । अर्थात स्थो पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १४ योजन है । 4- = = १ योजन । अर्थात ३री पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहत्य १३२ योजन है।
- * = * योजन । अर्थात् ररी पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १३३ योजन है । "- - - * योजन । अर्थात् १लो पृथ्वी के निकट तीनों पवनों का बाहुल्य १२ योजन है।
इभी प्रकार अध्यलोक में भूमि १६ योजन भौर मुख १२ योजन है । अतः १६ - १२ = ४ योजन की वृद्धि अवशेष रही। प्रथम और द्वितीय युगलों की ऊंचाई १३ ( देत ) राजू की है, तथा शेष ६ युगलों की ऊँचाई आधा आधा (4) रात की है, अतः जबकि ३६ राजु की ऊँचाई पर ४ बोगम की कृद्धि होती है. सब १३ राजू पर कितनो वृद्धि होगी ? और आधे (1) राज पर कितनी वृद्धि होगी। इस प्रकार दो राशिक करने पर पृधि का प्रमाणु क्रमशः . राजू और : राज प्राम होता है।
मेमतल मे ऊपर सौधर्म युगल के अधोभाग में वायु का बाहुल्य १४ अर्थात् १२ योमन {५ + ४ + ३) है, तथा सौधर्मशान के परिम भाग में +3 = योजन अर्थात् १३५ योजन ( बाहुल्य ) है । सानरकुमार माहेन्द्र के निकट " + २ = योमन अर्थात् १५३ योजन का बाहुल्य है । अब प्रत्येक युगलों की ऊंचाई आधा आधा राजू है। जिसकी वृद्धि एवं हानि का प्रमाण । है । अत: +8+ = योजन अर्थात् १६ योजन ब्रह्म ब्रह्मोतर पर पवनों का बाहुल्य है । 13 - २० योजन अर्थात् १५३ योजन बाहुल्य लान्सव कापिष्ट युगल का है। 29 - = 18 योजन अर्थात् १४५ योजन बाइख्य शुक्र महाशुक्र युगल का है। 18 - = 1 योजन अर्थात् १४० योजन बाहुल्य मतार सहनार युगल का है। - -: योजन
PAARAN