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गाथा : १२५
लोकमामान्याधिकार यिरवा पतिले षष्ठभूपरिणधिवायुवाहुल्यं स्यात् १५३तक १ गृहीत्वा तयानमेव तथा स्फेटविश्वा पवर्य : प्रासन विभागमेलने पंचभूषायुवाहल्यं स्यात् १४ । एवमेव सियालोकपर्यन्त पायुहा निबाहुल्यं भातम्यं १४।१।१२।१२ । इत अबलोकवायुचयं मुख १२ भूभ्योः १६ विशेष कृस्वा ४ माटोवपस्य चतुश्चये ४ अद्वितीयोदयस्प कियानुवय इति सम्पास्मानीय तद एताब मुझे १२ समयेदेन संयोज्य भक्त १३३ विबारिणधिवाघुबाहुल्यं स्यात् । एवमेव तत्र तत्र पृथक पृयाशिकविधिना उपस्तिनततायुवाहानिबाहुल्यमानयेत् ॥१२॥ . . अब उपरिम बायु के बाहल्य का निर्णय करने के लिये कहते हैं :: गापार्ष:-दोनों पाश्वं भागों में एक राजू के ऊपर सप्तम पृथ्वी के निकट धमोदधिवातवलय सातयोजन, धनवातवलय पाँच योजन और तनुवातवलय चार योजन मोटाई वाले हैं । इस सप्तम पृथ्वी के ऊपर क्रम से घटते हुए तिर्यग्लोक के समोर तीनों वातवलय क्रम से पांच, चार और तीन योजन | बाहुल्य धान धा यह नोट नाम से बने इए, सप्तम पृथ्वी के निकट सरश सात, पांच
और चार योजन बाहृल्य वाले हो जाते हैं तथा ब्रह्मलोक से क्रमानुसार हीन होते हए तीनों दातवलय ऊधलोक के निकट तिर्यग्कोक सहश पाँच, चार और नीन योजन बाहुल्य वाले हो जाते हैं ॥१२॥
__विशेषार्थ:-तोनी वातवलय यथाक्रम सप्तम पृथ्वी के निकट सात, पांच और चार योजन बाहुल्य वाले, तिर्यग्लोक के निकट पचि, चार और तीन योजन बाहुल्य वाले, ब्रह्मलोक के निकट सात, पांच और चार योजन बाहल्य वाले तथा ऊर्वलोक के निकट मध्यलोक सहश पांच, चार और सीन योजन बाहुल्य वाले हैं।
___सप्तम पृथ्षो से नियंग पृथ्वी पर्यन्त मध्यम पृध्वियों के वातवलयों का प्रमाण :- सप्तम पृथ्वी के निकट तीनों पत्रनों के बाहुल्य का प्रमाण १६ (७ + ५ + ४ ) योजन है, यह भूमि है । तथा तियेगलोक के निकट १२ (५ + ४ + ३ ) योजन बाढल्य है यह मुख है। भूमि में से मुख घटाने पर (१६-१२) = ४ योजन अबशेष रहे । सालबी पृथ्वी से तिर्यगलोक ६ राजू ऊंचा है, अतः अवशेष रहे ४ योजनों में ६ का भाग देने पर ( ४ :- ६ ) = 1 योजन प्रतिप्रदेश क्रम से एक राजू पर होने वाली हानि का प्रमाण प्राप्त हुआ।
१६ भूमि में से एक निकालकर उम एक को भिन्न स्वरूप करने में (x) हुये । इममें से योजन हानि घटाने पर (-) = ३ योजन शेष रहे। इन्हें २ से अपतित करने पर हुआ, इसको । १६ – १) = १५ में मिलाने से १५६ योजन होता है. अत. षष्ठ पृथ्वी के निकट १५६ मोज न तोनो पवनों का बाहुल्य है । पुनः १ निकाला, उस एक को समुकिछन्न ( )कर योजन हानि घटाने पर योजन को प्राप्ति हुई, इसे पूर्वोक्त विभाग में मिलाने में (+3 ) = योजन हये । अर्थात् १५४ - १ = १४३ + 3 = १४३ योजन हुये, अत: पञ्चम पृथ्वी के निकट पवनों का बातृस्य १४३ योजन है । पुनः १४ में में एक निकाला और उम एक में से हानि घटाने पर (-)