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________________ लोक सामान्याधिकार १३७ राजू और कोटि २ राजू + ( २ ) * **+ - राजू है, तो ४ त्रिभुज में (४ x ४ ) अध्यलोक में स नाड़ी के अतिरिक्त क ख ग और ध ये चार समकोण त्रिभुज हैं। प्रत्येक त्रिभुज की भुजा है । अतः प्रत्येक त्रिभुज के करण का वर्ग (5) र्व "राजू हुआ। एक त्रिभुज का का कितना होगा? इस प्रकार वैराणिक कर = १६ का गुणा करना चाहिए, क्योंकि वर्गराशि का गुणकार वर्गरूप ही होता है, अत. ६५ x २६० वर्ग राजू प्राप्त हुआ। २६० का वर्गमूल १६५ ५ लोक के चारों करों की परिधि है । लोक ऊपर १ राजू चौड़ा और नोचे ७ राजू चौड़ा है, अतः ७+ १ = ८ राजू हुआ। क एवं अधोलोक की साधिक (ॐ) परिधि के बिना शेष परिधि ( १५ + १६ ) ३१ राजू में ३९ राजू होते हैं। साधिक दोनों राशियों (ॐ ≠ है । कर इन्ही साविक राशियों के अंशों से समच्छेद करने पर जिनका गुणनफल ( ओर ( राजू है। जो = = के राजू मिलाने से (१५ +१६+ ८ ) (३०, ३२ को आधा ( १५, १६ ) XXप्राप्त होते हैं, है। इन दोनों का जोड़ है। इसे ४ से अपवर्तित करने पर राजू दोनों लोकों के अधिक का प्रमाण प्राप्त होता है । इस प्रकार लोक की परिधि पूर्व पश्चिम अपेक्षा राजू प्रमाण है । अलोकपरिवेष्टितत्रायुस्वरूपादिनिर्मायार्थमाह गाथा १२३ वर्ग गोमुचाणाणावणाणवणंधुघणतगुण हवे । बादाणं वलयतयं रुक्खम्य तयं व लोगस्स ।। १२३ ।। गोमुत्रमुद्गनानावर्णानां घनाम्बुधनतनूनां भवेत् । वातानां वलयत्रयं वृक्षस्य त्वगिव लोकस्य ॥ १२३ ॥ = गोमुल। गोमूत्र मुगमानाबानां धनोबंधिधन वाततवातानां वलयत्रयं लोकस्य भवेद वृक्षस्य स्वमिव ॥ १२३॥ लोकको परिवेष्टित करने वाली वायु के स्वरूपादि का निर्णय करने के लिए कहते हैं -- गाथार्थ :- जिस प्रकार वृक्ष स्वच् (छाल) से वेष्टित रहता है, उसी प्रकार लोक तीन वातवलयों से वेष्टित है। तीन तहों के सदृश नर्वप्रथम गोमूत्र के वबाला घनोदधिवातवलय है । उसके पश्चात् मूंग के वाला घनत्रातवलय है और उसके पश्चात् प्रनेक वर्णों वाला वनुदातवलय है ।।१२३॥ ૮
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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