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लोक सामान्याधिकार
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राजू और कोटि २ राजू
+ ( २ ) *
**+
-
राजू है, तो ४ त्रिभुज
में (४ x ४ )
अध्यलोक में स नाड़ी के अतिरिक्त क ख ग और ध ये चार समकोण त्रिभुज हैं। प्रत्येक त्रिभुज की भुजा है । अतः प्रत्येक त्रिभुज के करण का वर्ग (5) र्व "राजू हुआ। एक त्रिभुज का का कितना होगा? इस प्रकार वैराणिक कर = १६ का गुणा करना चाहिए, क्योंकि वर्गराशि का गुणकार वर्गरूप ही होता है, अत. ६५ x २६० वर्ग राजू प्राप्त हुआ। २६० का वर्गमूल १६५ ५ लोक के चारों करों की परिधि है । लोक ऊपर १ राजू चौड़ा और नोचे ७ राजू चौड़ा है, अतः ७+ १ = ८ राजू हुआ। क एवं अधोलोक की साधिक (ॐ) परिधि के बिना शेष परिधि ( १५ + १६ ) ३१ राजू में ३९ राजू होते हैं। साधिक दोनों राशियों (ॐ ≠ है । कर इन्ही साविक राशियों के अंशों से समच्छेद करने पर जिनका गुणनफल ( ओर (
राजू है। जो
=
=
के
राजू मिलाने से (१५ +१६+ ८ ) (३०, ३२ को आधा ( १५, १६ ) XXप्राप्त होते हैं, है। इन दोनों का जोड़
है। इसे ४ से अपवर्तित करने पर राजू दोनों लोकों के अधिक का प्रमाण प्राप्त होता है । इस प्रकार लोक की परिधि पूर्व पश्चिम अपेक्षा
राजू प्रमाण है ।
अलोकपरिवेष्टितत्रायुस्वरूपादिनिर्मायार्थमाह
गाथा १२३
वर्ग
गोमुचाणाणावणाणवणंधुघणतगुण हवे ।
बादाणं वलयतयं रुक्खम्य तयं व लोगस्स ।। १२३ ।।
गोमुत्रमुद्गनानावर्णानां घनाम्बुधनतनूनां भवेत् ।
वातानां वलयत्रयं वृक्षस्य त्वगिव लोकस्य ॥ १२३ ॥
=
गोमुल। गोमूत्र मुगमानाबानां धनोबंधिधन वाततवातानां वलयत्रयं लोकस्य भवेद वृक्षस्य स्वमिव ॥ १२३॥
लोकको परिवेष्टित करने वाली वायु के स्वरूपादि का निर्णय करने के लिए कहते हैं
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गाथार्थ :- जिस प्रकार वृक्ष स्वच् (छाल) से वेष्टित रहता है, उसी प्रकार लोक तीन वातवलयों से वेष्टित है। तीन तहों के सदृश नर्वप्रथम गोमूत्र के वबाला घनोदधिवातवलय है । उसके पश्चात् मूंग के वाला घनत्रातवलय है और उसके पश्चात् प्रनेक वर्णों वाला वनुदातवलय
है ।।१२३॥
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