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________________ त्रिलोकमार गया : १२२ साधिकरवं कथमिति चेदाह भुजकोरिकदिममासो कण्णकदी होदि मरासिम्स । गुणयारभागहारा वर्गाणि होति णियमेण ||१२२॥ भुजको टिकृतिममास: कागति. अति गरायो । गुणकारभागहारो वगो भवन नियमेन ॥१२२।। मुज । भुज ७ कोटि ३ कृति YEE समास: ५८ कर्णकृतिभवति । एकपात्यताति ५ वयोः पायोः किमिति वगराशेगुणकारभागहारो वर्षात्मको भवतः ८२२ नियमेन । एतत संगुण्य २३२ मुले होते १५ प्रबोलोकस्य साधिकरवमभूत् । भृज कोटि २ कृति ॥ ४ चमिस्सम छेडेन समासे कर्णकृतिः एकपाश्यस्येतावति चतुर्णाम् ४ सिमिति सम्पत्यापवयं गुणायित्वा २६० य मूले गृहीते १ मध्यसोकस्य साधिकायमभूत् । मिलितोमयपरिधि १५ + १६ रज्जुषु ३१ प्रपोलोकाषः परिधि: ७ । ऊध्वंलोकपरिधेश्च १ मेलने ८ एकोनचत्वारिंशत् ३६ प्रधिकोभयहारा ३०३२ वर्षीकृत्य १५०१६ सान्यामन्योन्यमंशको FATHIोधमाको १६४७ १५४ गुणपिया . सम्मेस्य १६४३० १५४३२ पतुभिरपरतने उभयलोकाधिक्यं स्यात् । पक्षि गोसरपरिधिः सुगम: ॥१२२॥ पूर्व पश्चिम अपेक्षा { लोक की ) परिधि साधिक ३१ राज़ कैसे है ? उसे ज्ञात करने के लिए करणसूत्र कहते हैं :-- गाथा :-भुजा और कोटि के वर्ग को परस्पर जोड़ने में करण का वर्ग होता है । वर्ग पशि का गुणकार व भागहार नियम से वर्गरूप ही होता है ।।१२२।। विशेषार्थ :--अधोलोक में बस नाड़ी के दोनों और अ और ब दो समकोण त्रिभुज है। प्रत्येक त्रिभुज की भुजा ७ राजू और कोटि ३ राजू है । अत: दोनों का वगं अर्थात् (७) + (5) - करण का बर्ग ( ४६ वर्ग गजू + १. वर्ग राजू ) - ५८ वगं गन प्राप्त हुआ । एक पार्श्व भाग का ५८ वर्ग गजू है तो दोनों एवं भागों का कितना होगा ? ऐसा पूछने पर २ के वगं ( २ (२)= 1 का गुणा करना चाहिए क्योंकि वर्ग राशि का गुणकार वर्गमम हर होता है, अतः ५८ ४ ४ -- २३२ वर्ग राजू हुआ। २३२ का वर्गमूल -मोटा मोटि ---- राज------ १५१ राज है। यही अधोलोक के दोनों त्रिभुजों के करों का परिधि है। -- Siday --:जा हवंति (म.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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