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________________ गाथा: १२० लोकमामाभ्याधिकार १३३ ११९ में राशिक फल से प्राप्त हुये है में से ३ अर्थात् कम करने पर (:- )- : राजू उपरितन अन्तः सूची क्षेत्र 'छ' की ऊंचाई प्राप्त होती है । ऊंचाई ३ राजू में से राजू घटाने पर (३-१)= राजू उपरितन बहिःसूची वाले क्षेत्र का उत्पध प्रारहा। उपरितन व्यासको ३ राजु । ) में से घटाने पर (33-3 -3 राजू शेष रहा । इसका आधा ( -1)= 3 राजू बहिःसूची की भूमि हुई । पुनः उसी राजू व्यास में से रान घटाने पर { १ -3) ... राजू हुआ तथा आधा करने पर 3 x = ! 'र' त्रिभुज की भूमि हुई। उपरिलन व्यास :" में से १ राज (:) घटाने पर (:"-:) : राजु अवशेष रहा। इसका आधा (5 2) - : राजू 'य' क्षेत्र की भुमि प्राप्त हुई। 'मुखभूमिजोगदाले' सूत्रानुसार नीचे और ऊपर के बहि सुची क्षेत्र का क्षेत्रफल -: भूमि + ० मुख = x आधा किया ) = १२ में : राज ऊंचाई से गुणा करने पर ( x): वगं राज् नीचे और ऊपर की बाह्य सूचियों का क्षेत्रफल है। इन दोनों मूचियों का अन्तः क्षेत्रफल जो कि भुज क्रांटि धादि मुबानुसार प्राप्त हुआ है, वह 'व' क्षेत्र का और 'ल' क्षेत्र का ३ है । इस २८ से गुरिगल करने पर ओर प्राप्त होता है । अन्तः सूची क्षेत्रफल और 8 में मे बहिःसूची क्षेत्रफन और घटा देने पर ( -1)-4 'क' का क्षेत्रफल, नथा। - राज 'ल' का क्षेत्रफल प्राप्त हुआ। एक एक क्षेत्र का राजू और राज है, तब दो दो क्षेत्रों का कितना होगा ? इस प्रकार राशिक करने पर (६३ ४३) = एवं ( x) -- २६ राजु अधः और उपरितन बहिःमुचो एवं अन्तरङ्ग क्षेत्र का क्षेत्रफल दृमा । अर्थात् ६ दो वक्षेत्रों का और दो 'ल' क्षेत्री का क्षेत्रफल प्राप्त हुआ। 'मुखभूमिजोगदले' सूत्रानुसार अन्य अंगों का क्षेत्रफल भी निम्न प्रकार है : [सम्बन्धित चार अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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