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________________ गाया। लोकसामान्याधिकार १३१ ज्यास में से १ राजू पटा देने पर ( -1) - १३ राज़ शेष रहा। दो पाव भागों की चौड़ाई : राज है, अतः एक भाग का (२४)राजू प्राप्त हुआ। यह प्रथम स्वर्ग के समीप 'स' त्रिभुज की चौड़ाई है। प्रथम स्वर्ग के उपरितन ध्यास को ३ राज ( २ ) में से घटाने पर (.-.)- राजू शेष रहा । इमका प्राधा (२-३ - राजू बहि सूची क्षेत्र की भूमि हुई। अथ त्रिभुजोदया गाथाद्वयमाह ज्जुिद्गहाणिठाणे माह दो जदीह एक्किम्से । किमिदि तिरामियकरण फलं दलूणं विबादमओ ।। ११९।। रज्जुद्विकहानिस्थाने अर्धचतुर्थोदयो यदीह एकस्य । किमिति राशिककरणे फलं दलोन त्रियाहृदयः ।।११।। रज्जु । रज्जुहिक २ हानिस्याने अर्धचतुर्थोक्यो : यदि तदस्य १ किमिति राशिककरणे फल । बलविवड़योः : ३ प्रएिविक्षेत्रत्रयोक्य: सत्फलं समछि नवलन्यून सिहा. त्रिधाहवयः ॥११॥ अब दो गाथानों में त्रिभुज को ऊंचाई बताने हैं गावार्थ :- ऊध्वंलोक मध्य में ५ राजू चौड़ा है, और नीचे १ राजू है अतः राजू पर एक ओर २ राजू की हानि होती है, तब १ राजू की हानि (x) - राजू पर होगी। इसमें से राजू घटाने पर ( -३) = * राजू त्रिभुज की ऊँचाई है ।।११।। नोट :-चित्र में राजू 'क' त्रिभुज की ऊंचाई है। विशेषार्थ :- राजू की ऊंचाई पर २ गज की हानि होती है, तो (:-:) राजू की ऊंचाई पर १ रा को हानि होगी। : -: = : राजू 'क' त्रिभुज की ऊंचाई हुई। निभुजदयूणुइयुच्चं सूईग्वेक्षम्म भूमिमूह सेसे । भूमीतप्कलहीणं चउरमधगफलं सुद्ध ।।१२० ।। त्रिभुजोदयोन मुभयोच्चं मूवीक्षेत्रस्य भूमि मुखगेपे। भुमितत्फल ही चतरमधराफल शुद्धम् ॥१२०।। सिधु । त्रिभुजोबन : अन: समुन्निविवड्वोधयः बहिः सूचीक्षेत्रस्पोमयः भूमिमुखयो
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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