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त्रिलोकसार
गाथा:११८ स्यतावति एकमागस्य सिमिति राषिक कुत्या प्रक्षित । प्रधोदिक्तसशत्रिभुजभूमिः प्रपोविषड्ढोपरिमण्यासं : समछिन्नविरज्यो , स्फेटविश्वा उपाधते : बहिः सूचीभूमिः ॥११॥
ऊर्ध्व लोक के क्षेत्रफल गमारने की अमेणा देवगरे :-
गायार्थ : - सामान्य अवलोक, प्रत्येक ऊर्चलोक, अर्धस्तम्भ ऊज़लोक स्तम्भ ऊवलोक और पिनष्टि अध्वंलोक, इस प्रकार क्षेत्र की अपेक्षा कम्लोक के पांच भेद जानना चाहिये ।।११।।
विशेषार्थ :--सामान्य को समीकृत भी कहते हैं। १. समीकृत २. प्रत्येक ३. अर्धास्तम्भ ४ स्तम्भ और ५. पिनष्टि क्षेत्र की अपेक्षा ऊर्ध्वलोक के पाँच भेद जानने चाहिए। १. सामान्य ऊर्ध्वलोक :--
जिस छात्र को हीनाधिक चौड़ाई को समान करके क्षेत्रफल निकाला जाता है उसे सामान्य क्षेत्रफल कहते हैं । ऊध्र्वलोक के अर्धा भाग की भूमि ५ राज , मुख एक राज और ऊँचाई ३. राजू है । भूमि और मुख को जोड़ कर माधा करने से (५ । १ = ६ - २) == ३ राजू प्राप्त हुआ। इसमें ऊंचाई का गुणा करने से (x). वर्ग राजू प्राम होता है। जबकि १ अर्धा क्षेत्र का क्षेत्रफल ३१ वर्ग राजू है, तो दो अर्धा क्षेत्रों का क्षेत्रफल कितना होगा । इस प्रकार राशिक करने पर (२०४३) = २१ वर्ग राजू सामान्य ऊन लोक का क्षेत्रफल प्राम हुआ। जैसे :
२. प्रत्येक ऊर्ध्वलोक :--
__ भिन्न भिन्न युगल का क्षेत्रफल निकालने को प्रत्येक क्षेत्रफल कहते हैं । बहालोक के मागीप भूमि ५ राजू मुस १ राजू और ऊँचाई ३३ राजू है । तथा प्रथम युगल की ऊँचाई ११ राजू है । भूमि ५-१मुख - ४ राजू अवशेष रहा । जवकि राजू पर ४ राजू को वृद्धि होती है, तो १६ राजू पर कितनी वृद्धि होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर (5xx ३) = १२ राजू वृद्धि प्राप्त हुई ।