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________________ गाथा: ११७ लोकसामाभ्याधिकार १२३ शन -- रान - ३१ राजू -- एर २राज hits -१४ राजू १ महान मन नगरपन इस दूष्य क्षेत्र में प्रथम क्षेत्र आयतचतुरस्र है, जिसकी भुजा ७ राजू और कोटि १ राज है। दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें और छटवं क्षेत्र विषम चतुरन हैं, तथा इन सबकी कोटि एक एक राज़ है । अन्तिम सातवां क्षेत्र त्रिकोण है जिसकी ऊंचाई राजू तथा आधार एक राज है। गाथा ११६ में अर्घयव का उत्सेध राज कहा गया है। इसको समान छेद के द्वारा ७ राजू में मे घटाने पर (४३ -2) - 14 राजू अवशेष रहता है। अर्थात् प्रथम' चतुर्भुज को भुमि ७ राज, मुख २५ राजू है । उस राजू में से अवयव का उत्संघ है राजू घटा देने पर :- ) : राज दूसरे विषम चतुभुज का मुख प्राप्त होता है । इमी प्रकार पूर्व पूर्व के मुख में से पुनः पुन: अधयन का उत्सध राजू घटाने पर उत्तर उत्तर विषम चतुर्भुज का मुख प्राप्त होता है । मुख और भूमि को जोड़ लब्ध को आधा कर कोटि से गुणा करने पर विषमचतुर्भुज का क्षेत्रफल प्राप्त होता है । सातों क्षेत्रों का क्षेत्रफल : नं. १ का क्षेत्रफल :-७४१ - ७ वर्ग राज नं. २ का :-( + ) ४.४१ = वर्ग राजू नं० ३ का:-(३+%)x x१-१३ वर्ग राजू नं. ४ का:--(३. + 1 x 1 x १ = ६५ वर्ग राजू नं० ५ का :-( 2 + 2) x 1 x 1 = ३१ वर्ग राजू
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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