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त्रिलोकसार
पाथा : ११७ इन्हें परस्पर में जोड़ने पर 18 + 8 + ५४१ + Y: + hit + : अर्थात् ... १६६३ + ११४८ + ५२०३ + ४४८ + ९२८ + १८ = १४ = २८ वर्गराजू मन्दर अधोलोक का क्षेत्रफल प्राप्त होता है। विशेष विवरणयुक्त मन्दर मेरु का क्षेत्रफल :-- १. प्रथम खण्ड का क्षेत्रफल :-प्रथम खण्ड की भूमि ७ राज , मुम्ब ६५ राजू और उन्मेष राजू
है। प्रतः +९१ = राजू हुआ। इमका आधा५ x = x : ॐ =
स. अर्थात् ५५२ वर्ग राजू प्रथम खण्ड का क्षेत्रफल होता है । २. दूसरे पक्ष का :- दूसरे खपड की भूमि व मुख दोनों ६२ राजू हैं, नथा उत्सेध : राज़ है।
अतः ६३ ४ ५ = १ अर्थात् ३, वर्ग राज दूसरे खण्ड का क्षेत्रफल । ३. तीसरा खण्ड :- तीसरे खण्ड को भूमि ६ राजू, मुख राजू और जूमध ३ राज़ है । ____ अतः ६४ + २४ = .. राजू हुआ। इसका आया २२.१x १२. राज ।
राजू उत्सेध - ५३६. अर्थात् १५१ वर्ग राजू तीसरे खण्ड का क्षेत्रफल । ४ चौथा खण्ड :- चौथे खण्ड की भूमि व मुख दोनों राजू, और उसंध : राज है । अतः
३. ४. = F अर्थात् ११ बर्ग राजू चौथे खण्ड का क्षेत्रफल । ५. पांचवां खण्ड :--पांचवें खण्ड की भूमि ३२ राज, मुख १ राजु और उन्सेध : राजू है। अत:
१६+ ( अर्थात् १ राजू ) = x आधा किया -४।२३ ४ ३ उम्मेध = ३६ वगं राज पांचवें खण्ड का क्षेत्रफल २१ वर्ग राजू है। चूलिका :-चूलिका की भूमि राजू, मुम्ब : राजू और उनमेध राज है। अतः + : = १ राजू । १४:( आधा किया) - 3 1 उरमेध = ". वर्ग राज जूनिका का क्षेत्रफल प्राप्त हुआ। इन छहीं खण्डों का योगफल :१२ - +5173 -/- + ३५ + १६८३ + ११४८ + ५२०३ + ४४८ --- ८२८ 1. १८ - ९४०८ ...
- नगरान २८ वर्ग राजू मन्दर अधोलोक का क्षेत्रफल प्राR हुआ।
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दृष्य अधोलोक :
दूष्य का अ डेरा [ TENT ] होता है। अधोलोक के मध्य क्षेत्र में देरी की रचना करके क्षेत्रफल निकालने को दूष्य क्षेत्रफल कहते हैं । यह रचना निम्नांकित चित्र द्वारा स्पष्ट हो जाती है :--