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गाथा:११७ लोकसामान्याधिकार
१२१ राज प्राप्त हुआ। एक खण्ड का भाग प्राप्त हुमा, अत: दोनों वनों के चार कोनों के चार खण्ड। राजू भूमि, • मुख और राजू ऊचाई वाले प्राप्त हुये। इन चारों (
1 2 ) खण्डों में से एक खपल की भूमि ऊपर और मुख नीचे करके, तथा तीन खण्डों की भूमि नीचे और मुख ऊपर करके स्थापन करने से तल भाग में राजू आयाम, नोदी पर राज आयाम और राजू चाई वाली चूलिका प्राप्त हो जाती है। अधोलोक में मुदर्शन ( मन्दा ) मेरु की रचना :
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शान्
इस उपयुक्त चित्रण में दो आयतचतुरन और चार विषम चतुर्भुज बने हैं । विषम चतुर्भुजों का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिये मुख और भूमि को मिलाकर आत्रा करना चाहिये ( पुनः उत्सेध से गुणा करना चाहिये )। तथा आयतचतुरस्न का क्षेत्रफल प्राप्त करने के लिये भुजा और कोटि का परस्पर में गुणा करना चाहिये। इन छहों क्षेत्रों के क्षेत्रफलों को क्रम से ३, २, १, २, ६ बीर १४ से गुणा करने पर समान छेद ( ३३६ ) प्राप्त होता है । यथा - ४१४३ - 3 ३३ ५ - १३:३१ x १
.x१६ - १३ प्राप्त हो ।
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