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________________ त्रिलोकसार १२० हानि होगी ९ इस प्रकार वैराशिक करने पर ( ४ राजू आयाम में से घटा देने पर (१४) क्षेत्र का है। = दूसरे ( ५२ ) खण्ड के ऊपर तीसरा खण्ड ३ राजू ऊँचा है। जो ६२३ हजार योजन के स्थानीय है, क्योंकि नन्दन वन से सौमनस बन साढ़े बासठ (६२३ ) हजार योजन ऊँचा है। गा १७ ) राख की हानि प्राप्त होती है । इसे * राजू का आयाम नन्दनवन के उपरितन = राजू का उपरितन आयाम :-- जबकि ७ राजू को ऊँचाई पर ६ राजू की हानि होती है, तब ३३ राजू की ऊँचाई पर कितनी हानि होगी ? इस प्रकार वैराशिक करने पर ( ३ ) 23 राजू की हानि प्राप्त होती है। इसे ३ राजू आयाम में से घटा देने पर ( राज का आयाम ३ राजू ऊंचे क्षेत्र के उपरितन माग का है । 5 ( 3 ( राजू ऊँचा है। जो सौमनस् वन स्वरूप है । तीसरे खण्ड के ऊपर चौथा खण्ड सौमनस वन के उपरितन क्षेत्र का आयाम : - जबकि ७ राज की ऊँचाई पर ६ राजू की हानि होती है, तब राजू की ऊँचाई पर कितनी हानि होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर ४ राजू की हानि प्राप्त होती है। इसे ३ राजू आयाम में से घटा देने पर राजू आयाम सौमनस वन के उपरितन क्षेत्र का है । ) 52 चौथे खण्ड के ऊपर पांचवां खण्ड ३ राजू ऊँचा है। इसके ऊपर पाण्डुक वन है- जो मौमनस बन से ३६ हजार योजन ऊँचा है । अधोलोक ऊपर में एक राजू चोदाई वाला है; जो पाण्डुक बन के स्थानीय है । = राजू की ऊँचाई पर कितनी हानि होगी ? हाति प्राप्त हुई। इसके अर्थात् राजू को अर्थात् १ राजू आयाम पाण्टुक वन का है । पाण्डुक वन का आयाम : - जबकि ७ राजु की ऊँचाई पर ६ राजू की हानि होती है, त इस प्रकार के त्रैराशिक से (६× ३ ) - राजू की राज् आयाम में से घटा देने पर (१३ - १६) पाण्डुक बन के ऊपर चूलिका है। अतः अधोलोक के ऊपर भी चूलिका बनाने के लिये कहते हैं : नन्दन वन और सौमनस वन पर सुदर्शन मेरु सोधा अर्थात् आयत चतुरस्त्र स्वरूप है । अङ्क संदृष्टि में इन दोनों वनों की ऊंचाई पर राजू प्रमाण है। इन दोनों वनों की आयतचतुरस्त्र स्वरूप करने के लिये निम्नलिखित विधान है :- नन्दन वन की भूमि ( ) में से मुख (६ घटाने पर ६) अर्थात् राजू प्राप्त होता है। इसी प्रकार सौमनस बन की भूमि ( ३३ ) में से मुख (३) घटा देने पर ( ३१ R) अर्थात् राज प्राप्त हुआ । जबकि दो खण्डों पर ! राजू प्राप्त होता है, तब खण्ड पर क्या प्राप्त होगा ? इस प्रकार वैराशिक करने से ( ( १ २x२ = =
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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