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गाथा : ११५
लोकसामान्याधिकार हादशोक्यो उलिका कुर्यात् । पश्चाविषमवत क्षेत्रकलं मुसभूमिमोगरलेस्याविनानीय प्रायतचतुराक्षेत्रफलं भुजकोटिवेषाविण्याविनानीय पणा फलानां च त्रिवि २ द्वि २ षट् ६ चतुरंश भि: समानछेवेन मेलनं कृत्वा हृते च मन्दरक्षेत्रफलं भवति २८। राजुतयस्लेत्यादिनायबोलेषमानीय समामछिन्न सप्सरज्या ३ स्फेटने सतरम्जुभूमेमुखं स्यात् । तत्रैव पुनरपबोरसेषस्फेटने ३६ सप्तरस्य मुखं स्यात् । एवं पूर्वपूर्वमुखे पुनः पुनः पर्धापबोरसेषस्फेटमे तसतरोत्तरस्य मुलं स्यात् । मुखभूमिजोगेत्यादिना या क्षेत्राएो फलमानीय मेसयित्वा ५३ हुस्वा २१ सप्सरजूमेलने २८ वष्योत्रफलं भवति । रज्जूतयेत्याविनायवक्षेत्रफलमानीय र एकसणस्तावति । अमावारिशत्सवाना किमिति सम्पात्य द्वादशभिरपवयं भक्त्वा ४ गुणिते २८ गिरिकटकशेत्रफल भवति ॥११७॥ मन्दर मघोलोक :
पाषार्थ :- अधालोक में नीचे से ऊपर आधे राज में चौथाई राज़ मिला देने से (३ + 2) पौन राज होता है। राज मेर राज़, इसमें १३ राज , इससे १२ राज और इससे ३ राज कपर, ऊपर जाकर जिस आकार का निर्माण होता है, वही मन्दराकार का क्षेत्र बन जाता हे ॥११७||
विशेषार्थ :-अधोलोक में मृदर्शन मेक के आकार को रचना कर क्षेत्रफल प्राप्त करने को मन्दर क्षेत्रफल कहते हैं।
__ अधोलोक ५ राज ऊंचा है। उममें नीचे से ऊपर की ओर : राजू ) राज का पहिला भाग बनाया है । जो ५०० योजन के स्थानीय है, क्योंकि मन्दर मेरु ( दर्शन मे) पर नन्दन बन तल भाग (भद्रशाल वन ) से ५.०० योजन ऊपर जाकर है।
राजू क्षेत्र का उपरितन आयाम :-भूमि ७ राज और मुख १ राज़ है। भूमि में से मुख घटा देने पर ( -१) - ६ राज अबणेप रहा । अतः जबकि ७ राज की ऊंचाई पर ६ राज को हानि होती है. नबराज पर कितनी हानि होगी ? इस प्रकार राशिक करने से {xt) = राज की हानि प्राप्त हुई। इसे ७ राज़ आयाम में से घटा देने पर 2-1 = * = ६ राज आयाम राज की ऊंचाई के उपस्तिन क्षेत्र वार है।
राज से ऊपर के राज अंचे जाकर दूसरा खण्ड है । जो नन्दन वन के स्थानीय है । इसका परितन आयाम :
जवकि ७ राजू की ऊँचाई पर ६ राज को हानि होती है, नत्र म राज की ऊँचाई पर कितनी
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२ अथ दूप्रोन्नस्वरूपमाह (न, ५० ) ।
१ चतुरस्रस्य क्षेत्रफलं ( २०, प.)। ३ ममानवेन ( म०, ५०)।