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________________ गाया : ११३ लोकराजाधिकार ११७ पर ७ राजू ऊँचाई प्राप्त होती है, तब एक राजू घटने पर कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी। इस प्रकार राशिक करने से राजू ऊँचाई प्राप्त हुई । यही ? राजू एक यब की ऊंचाई है । अकि एक यव को ऊँचाई राज है तब अर्धायव की कितनी होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर अर्धयव की ऊँचाई है राज प्राप्त होती है । अर्धयों का क्षेत्रफल :-अधोलोक के दोनों पाश्व भागों में १८ अर्थायव हैं। एक अर्थायव की भूमि १ राज , मुख० और उन्सेध ! राजू है । ''मुखभूमि जोगदले" सूत्रानुसार १ + = १. : २-- 2x = १ राजू एक अधीयव का क्षेत्रफल प्राप्त हुआ । जबकि एक अर्शयव का क्षेत्रफल राज है, तब १८ अर्धयवों का कितना होगा? इस प्रकार राशिक कर ( x )बह से अपवर्तित करने पर १८ अऽयिवों का क्षेत्रफल अर्थात् १०३ वर्ग राजू प्राम हुआ। मुरज का क्षेत्रफल :- दोनों पारवं भागों के १८ अपिय अलग कर देने के बाद अधोलोक का आकार एक मुरज मदश अवशेष रहता है। इसे ऊंचाई में से प्राधा कर देने पर दो अर्धमुरज होते हैं। एक अर्धमुरज का मुख १ राज और भूमि ४ राजू है । दोनों का योग { ४ . १ ) == ५ राज हुआ। इसे आधा करने पर (५ २) राजू हये, इनको ३३ राजू उत्सेष से गुणित करने पर (५४) - राजू पद धन होता है । जबकि अर्ध ( 3 ) मुरज का क्षेत्रफल १ राजू है, तब एक मुरज का कितना होगा ? इस प्रकार राशिफ करने पर ( २ ४ ) = ३५ अर्थात् १७३ राजू सम्पूर्ण मुरज का क्षेत्रफल प्राप्त हुआ। इस प्रकार १८ मयिवों का क्षेत्रफल १०३ राजू और सम्पूर्ण मुरज का क्षेत्रफल १५३ रा है, अत: १७३ + १०१ = २८ वर्ग राज यव मुरज अधोलोक का क्षेत्रफल प्राप्त होता है । यबमध्य अधोलोक: अधोलोक के सम्पूर्ण क्षेत्र में यवों की रचना करने को यवमश्य कहते हैं। जिम प्रकार यवमुरज के दोनों पाव भागों में अयिव की रचना की थी उसी प्रकार सम्पूर्ण अधोलोक में यव को रचना करने से २० पूर्ण यव और ६ अर्धयन प्राप्त होते हैं। इन ८ अर्धायवों के ४ पूर्ण पत्र बनाकर मम्पूगां अधोलोक में २४ पूर्ण यवों की प्राप्ति हुई।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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