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________________ ११६ त्रिलोकसार गाथा:११६ मागसमेकबोरसेषप्रमाणमिव । एकयषस्य १ मत्युग्ये प्रयास किमिति सम्पाते गर्भपबोरसेपमानं स्यात् । पश्चावयवक्षेत्रफलं "मुखभूमिजोगबले (मु० भूमि १ जो १दले ३ ) त्यादि मानीय एकायियस्य । इयति र फले महायशास्य किमिति सम्पास्य पनिरपवतिते म यवक्षेत्रफलं स्यात् । मुख भूमि ४ जोग ५ वले पदे गुरिणते पवन होवोत्य मुरणक्षेत्रफलमानीयापुरजस्यतावतिफले एकमुरजस्य किमिति सम्पापवयं ३५ एतपयक्षेत्रफले ३. संयोज्य भाजिते २५ यवमुरजकोत्रफलं भवति । यबमपत्रस्ययवान् सर्वान गुणयित्वा २४ पूर्ववश्व - पवोत्रफलमानीय र पुमयिवस्था : एतावति १ एकयवस्य किमिति सम्पास्यापतिते एक यवक्षोत्रफलं है स्यात् । एकयवस्य एतावति फले चविंशतियवाना किमिति सम्पास्य षभिरपतिते पबमध्यक्षेत्रफल २८ भवति ॥११॥ यवसुरज अधोलोक: गाथार्ष:--जबकि एक और ३ राजू के घटने पर ७ राज़ की ऊंचाई प्राप्त होती है, तब एक राज घटने पर कितनी ऊँचाई प्राप्त होगी? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर एक यव की राज ऊंचाई प्राप्त होगी ।।११।। विशेषार्ष:- अधोलोक को मुरज । मृदङ्ग) य यव (जो अन्न ) के आकार में विभाजिन करने का नाम पवमुरजाकार है। उपयुक्त गाथा में यवमुरज आकार द्वारा अधोलोक का क्षेत्रफल ज्ञात करने की मुमना दी गई है। जैसे : अधोलोक नीचे ७ राजू चौड़ा है। दोनों ओर क्रम से ( समान अनुपात में ३, ३ राजू ) घटते हुये मध्यलोक के समीप एक राजू की चौड़ाई अवशेष रहती है, अतः जबकि ( एक ओर ) ३ राजू धटने १ मानं स्यात् (...)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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