SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2.रा./ पापा : ११६ ३. तिर्यगायत अधोलोक : जिस क्षेत्र की लम्बाई अधिक और ऊंचाई कम हो उसे तियंगायत क्षेत्र कहते हैं। अधोलोक सात राजू ऊंचा है। भूमि ७ राजू और मुख १ राजू है । ७ राजू ऊंचाई के बराबर बराबर दो भाग करने पर नीचे ( नं० १ ) का भाग ३३ राजू ऊंचा, और ७ राजू भूमि तथा ४ राजू मुख वाला हो जाता है। ऊपर के भाग की चौड़ाई की अपेक्षा दो भाग करने पर प्रत्येक भाग ३३ राजू ॐधा, २ राजू भूमि और राजू मुख वाला हो जाता है। इन दोनों ( नं० १ और २) भागों के नीचे वाले ( नं० १) भाग के दाईं बाईं ओर उलट कर स्थापन करने से ३३ राजू ऊना और राजू लम्बा तिर्यग् आयत क्षेत्र बन जाता है। जैसे : ३ -४ राजू १ लोकसामान्याधिकार ७ राजू २ राज् वाज ४.२ राज् ३ १ ७ राजू ११५ क्षेत्रफल :- यह आयत क्षेत्र ८ राजू लम्बा और ३३ राजू कोटि समान है। तथा आमने सामने की भुजा भी समान है, अतः गुणा ( ऊंचा है। इसकी ऊपर नीचे की राजू कोटि को ३३ राजू भुजा मे ३ ) करने पर २८ वर्ग राजू नियंगायत अधोलोक का क्षेत्रफल प्राप्त हो जाता है । अथ यवमुजक्षेत्रफलमानयति रज्जुतसोमरसत्तुभो जदि हवेज्ज एक्केसे । किमिद कदे संपादे एक्कजउस्सैहमाणमिणं ।। ११६ । । रज्जुनयस्य पसरणे सप्तोदयो यदि भवेत् एकस्याम् । किमिति कृते सम्पत एकययस्योत्सेधमानमिदम् ।। ११६ ॥ रज्जु 1 रज्जुत्रयस्यावसरणे सप्तोदयो यदि भवेत् एक अवसर कियानुदयइति संपते कृते
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy