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________________ पापा १११-११२ लोकसामान्याधिकार १०७ लिखकर परस्पर में गुणा करने से पल्य का प्रमाण (१६) प्राप्त होता है । तथा पल्प ( १६ ) में दश कोड़ाकोली (८) का गुणा करने से { १६ x ८ = १२८) सागरोपम का प्रमाण प्राप्त होता है। अथ प्रसंगेन होनछेदानां किमित्याकांक्षायामाह' विरलिदरासीदो पुण जेसियमेचाणि वीणस्वाणि । नेमि अण्णोण्णहदी हारो उत्पण्णरासिस्स ॥१११।। विरलितराशितः पुनः यावन्मात्राणि हीनरूपाणि । तेषामन्योन्यहतिः हार उत्पनराशेः ।।१११॥ विलिय । अस्याः छायामात्रमेव ॥१११॥ अब प्रसङ्गवश हीन । कम } अर्धाच्छेदों का क्या विधान है ? ऐसी शक्का होने पर कहते हैं गाषा :-विवक्षित विरलन राशि के अच्छेदों से जितने हीन अच्छिंद हैं, उतनी जगह दो ( २ ) के अङ्क रखकर परस्पर गुगा करने से जो लब्ध प्राप्त हो वह उत्पन्न ( लब्ध ) राशि का भागहार होता है । १११॥ विशेषार्थ :-विरलनराशि पाट्टो के अछिंद १६ हैं और विवक्षित राशि के अस्छेिद १२ हैं, जो १६ से ४ कम हैं । अतः चार बार दो का अङ्क रखकर परस्पर गुणा करने से १६ को उपलब्धि हुई; जो विरलन राशि ( १६ ) प्रमाण २ का अङ्क रखकर परस्पर गुणा करने से ६५५३६ का भागहार है अर्थात ६५५३६ में उपर्युक्त १६ का भाग देने से विवक्षित राशि ४०६६ की प्राप्ति होती है। अर्थानरप्रकरणस्य पातनिकागाथामाह जग सेदीप बगो जगपदरं होदि नघणो लोगो। इदि मोहियसंखाणम्सेतो पगदं परूवेमो ॥११२।। जगण्यावर्ग: जगत्त्रतरी भवति तद्घनो लोकः। इनि बोधितसंख्यानस्य इतः प्रकृतं प्ररूपयामः ।।१:२॥ जग। जगच्छण्या वर्गः तत्पतरो भवति । तस्या: श्रेण्या धनो लोक इत्यस्माभिर्बोधित संख्यानस्य शिष्यस्य इत; परं प्रकृतं प्ररूपयामः ॥१२॥ अपमाप्रकरणं समाप्तम् । अब पूर्व प्रकरण के उपसंहार रूपनाथा कहते है : १ किमित्यामाकायामाह (ब.प.)। २ उपमाप्रमाः समाप्ता. (प.); उपमाप्रमाणं समाप्तम् (प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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