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________________ त्रिलोकसार गांधा:१०७-१० पाथाप :-भाज्य के अधच्छेदों में से भाजक { हर ) के अर्धच्छेद घटाने पर लब्धराशि ( भजनफल ) के अर्घच्छेद प्राप्त हो जाते हैं ।। १०६।। विशेषार्थ :-जैसे - ६४ : ४ = १६ यहाँ भाज्य राशि ६४ के ६ अर्धच्छेदों में से भाजक राशि ४ के २ अर्धच्छेदों को घटा देने पर लब्धराशि (भजनफल राशि ) १६ के ४ अर्धच्छेद प्राप्त हो जाते हैं । यही नियम सर्वत्र जानना चाहिए। अथ सूच्यंगुलस्याधच्छेदं दर्शयन्नाह विरलिज्जमाणरासिं दिण्णसद्धचिदीहि संगुणिदे । अद्धच्छेदा हाँति हु सम्बत्थप्पण्णरा सिम्म ।।१०७१। विरल्यमानराशी देयस्याच्छिदिभिः संगुणिते । अर्थच्छेदा भवन्ति हि मर्वयोत्पनराशेः ॥१०॥ दिर । विरल्यमानराशि: पल्पच्छेवरतस्मिन् देयस्य पल्पस्याभोवः संगुणिते सत्युत्पन्नराशेः सुच्यंगुलस्याच्चेवा भवन्ति खलु सर्वत्र ॥१०॥ मूच्यं गुल के अच्छदों का उल्लेख करते हैं गाथा:-विरलन राशि में देय राशि के अघच्छेदों का गुणा करने से उत्पन्न ( लब्ध ) राशि के अच्छेद प्राप्त हो जाते हैं ||१०|| विशेषार्थ:-जैसे - विरलम राशि ४ और देय राशि १६ है । अत:+ -- ६५५३६ लन्ध राशि हुई। यहाँ पर विरलन राशि ४ में देय रागि १६ के ४ अपच्छेदों का गुणा ( ४ ४ ४ = १६ अर्घ० ) करने से लब्धराशि :६५५३६ के प्रघंच्छेद १६ की प्राप्ति होती है । उपयुक्त नियमानुसार - यहाँ पर विरलनराशि पत्य के अर्धच्छेद हैं। इसमें पल्य स्वरूप देय रानि के अर्धच्छेदों का गुणा करने पर सूच्यंगुल स्वरूप लन्धराशि के अधच्छेदों का प्रमाण प्राप्त होता है । जो पल्य के मच्छेदों के वर्ग प्रमाण है । यह नियम सर्वत्र जानना चाहिए। अय सूज्यंगुलस्य वर्गशालाकां वर्शयन्नाह विरलिदरासिच्छेदा दिण्णद्धच्छेदछेदसंमिलिदा । वग्गसलागषमाणं होति समुप्पण्णरासिंस्म ॥१०८|| विरलितराशिच्छदायाच्दन्छदसम्मिलिताः । वर्णशलाकाप्रमाणं भवन्नि समुत्पनराशेः ।।१८८।। विरलिव । मन्यंगुलाबच्छेवस्थापितबारा ११ व १ युताः व २ सध्यंगुलस्य वर्गशलाका भवन्ति । "वग्गानुवरिमवग्गे वुगुणा दुगुणा एवंति पछिको" इति न्यायेन डिगुणा: सूध्यंगुलाछेना ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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