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गाषा: १०
लोकसामान्याधिकार छे थे २ प्रत गुलार्धच्छेवा भवन्ति । "अगसला पहिया" इति व्यापेन रूमाषिकसूचीवर्गवालाकाः २ प्रतर्रागुलवर्गशलाका भवन्ति । विरूपवर्गषारोस्पन्नस्य सूच्यंगुलस्य समानस्याने हिरूपधनपारायां धमांगुलस्योत्पन्नस्यात् । "तिगुणा सिगुणा परहाणे" इति न्यायेन त्रिगुणा:सूच्यंगुलाछेवाः धनागुलाधच्छेदा भवन्ति । "सपवे परसम" इति न्यायेन सूध्यंगुलवर्गशलाका एवं घनांगुलस्य वगंशालाका भवन्ति २। "विरलिज्ममालास वि " याविन्यास रिमाययछेवासंख्यातभागेषु (छ)धनांगुलच्छेदः (छे छे छे ३) गुणिलेषु (छे छे छे ३ ) सस्तु जगच्छण्याः छेवाः भवन्ति ॥१०॥
अब सूच्यंगुल की वगंगलाकाओं को दिखाते हुए कहते हैं :
गापापं :--विरलन राशि के अर्धच्छेदों को देय राशि के अर्धच्छेदों के अर्घच्छेदों में मिलाने (जोड़ देने में विरलन एवं देय के द्वारा उत्पन्न हुई राशि की वगेशलाकाओं का प्रमाण होता है ||१६||
विशेषार्थ :-मान लीजिए - विरलन गशि ४, देय रागि १६ और उत्पन्न राशि ६५५३६ है । यहाँ विर लन गशि के अर्धच्छेद २ हैं, इन्हें देय राशि १६ के अच्छद ( ४ ) के अधुच्छेद अर्थात् ४ अधच्छंदों के अधच्छेद २ में मिला (२+२ = १) देने में उत्पन्न राति ६५५३६ को ४ वर्गशलाकाएं होती हैं।
उपयुक्त दृष्टान्तानुमार यहां पर भी विरलन राशि पल्य के अर्थच्छेद हैं अतः विरलन राशि के अर्धच्छेद ही पल्प को वगंशलाकाएं हैं। ( क्योंकि अर्धच्छेद के अधच्छेदों का नाम वर्गशलाका है ।। देय राशि पल्य है. और देयराशि के अर्धच्छेदों के अर्धच्छेद भी पल्प की वर्गशलाकाएं हैं।
इस प्रकार विरलन राशि के अर्धच्छेद = एल्य की वर्गशलाकाएं + देयगशि के अच्छेदों के अच्छंद --- पल्य की वगंगलाकाएँ = पल्य की दो अर्थात् दुगनी वर्गशलाकार प्राप्त हुई। यही वगंगलाकाएं सूच्यं गुल की वर्गशलाकाओ का प्रमाण है ।
____ "बम्गादेवरिमवग्गे दुगुगा दुगुणा हवन्ति अद्धन्द्धिदी ( गा०७४ ) मूत्रानुसार सूच्यंगुल के अर्धच्छेदों से प्रतरांगुल के अच्छेद दून होते हैं। "वग्गसला रूव हिया" ( गाथा ७५ ) सूत्रानुमार मुख्यंगुल की बर्गशलाकाओं से प्रतरांगुल की वर्गालाका एक अधिक प्रमाण बाली होती है ।
द्विरूपगंधारा में जिम स्थान पर गुच्यं गुल उत्पन्न होता है, द्विरूपचनधारा में उसी स्थान पर थनांगुल की उत्पत्ति होती है। "तिगुगणा निगुग्गा परट्ठाणे' ( गाथा ८४ ) मूत्रानुसार मध्यंगुल के अपच्छेदों से धनांगुल के अनिछेद नियम से तिगुने होते हैं। "मपदे एरसम" ( गाथा ७५ ) भ्यायानुमार सूच्यंगुल और धनांगूल की वर्गशलाका वरावर ही होती हैं।
"विररिणज्जमा रासि दिणस्म'' ( गाथा १०७ ) न्यायानुसार पल्य के अधुच्छेदों के असं. स्यात भाग स्वरूम विरलन गगि को, देय राशि स्वरूप घनांगुल के अच्छेदों से गुणा करने पर