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________________ त्रिलोकसार गाथा: १०४ हृस्यापवर्त्य २५, ४ ल ल, १०००, ४१ - एतावत्समयस्य एकस्मिन् पल्ये एतावत्समयाना किमिति २५ सम्पात्यापर्यातते सागरोपमोत्पत्तिर्भवति ॥ १०४ ॥ ४ ल ल १०००, ४१ अब अन्य गुणकार दिखाते हैं : = मावार्थ :- गाथा १०३ के अनुसार लवगा समुद्र में पल्यों ( कुण्डों ) का प्रमाण २४ ला X ला. १००० है । इस प्रमाण को ( गाथा हरु में कही गई । पल्य की ) रोम संख्या ४१ से गुणा करने पर लवण समुद्र में रोम सं० २४ ला बराबर जल निकालने में यदि २५ समय लगते निकालने में कितना काल लगेगा ? इस प्रकार संख्या से भाग देने पर एक सागर में पल्य हख्या की उत्पत्ति होती है। ला. १००० x ४१ = प्राप्त होती है। छह रोम के हैं तो लवण समुद्र की रोम संख्या बराबर जल राशिक करके जो लब्ध प्राप्त हो उसको पाल्य की रोम १०० -- X असं० विशेषार्थः :- व्यवहार पल्ध के रोमों का चिन्ह ४१ - है । व्यवहार पास से असंख्यात गुणे रोम उद्धार पल्य में हैं जिसका चिन्ह ४१ - ९ असं ० है । इनमे भी असंख्यात गुणे रोम अद्धापल्य में हैं जिसका चिन्ह ४१ = x असं० x असं० है । जबकि अापल्य स्वरूप एक कुण्ड में ४ x असं० रोम हैं, तत्र लवण समुद्र में प्राप्त २४ ल ल x १००० पल्यों ( कुण्डों में कितने रोम होंगे? इस प्रकार राशिक करने पर फलराशि ४१ = x असं० X असं० को इच्छा राशि २४ ल ल x १००० कुण्डों से गुणित कर प्रमाण राशि १ कुण्ड का भाग देने पर लवण समुद्र मत कुण्डों में रोमों का प्रमाण ४१ X असं असं० x २४ ल ल x १००० प्राप्त होता है ( एक कुण्ड में जितने रोम हैं उतने ही समय का एक पत्य होता है, अतः कुण्ड और पल्य में भेद नहीं कहा ) । जबकि ६ रोम जितने क्षेत्र को रोकते है उतने क्षेत्र का जल निकालने में २५ समय लगते हैं, तब ४१ = x असं x असं० x २४ लल X १००० रोमों से अवरुद्ध क्षेत्र का जल निकालने में कितने समय लगेंगे १ इम प्रकार वैराशिक करने पर समयों का प्रमाण - X असं० x असं० x २५ x २४ १००० ४.१ ६ D होता है । यहाँ प्रमारण राशि ६ से २४ को अपवर्तन करने पर ४१ = x असं० x असं० x २५ x ४ ल ल x १००० समय प्राप्त होते हैं। जबकि ४१ = x असं० x असं समयों का एक अढा पल्य होता है तत्र ४१ x असं० x असं० X २५४४ ल ल x १००० समयों में कितने अापल्य ४१ = x असं० x असं० x २५ X ४ ल ल x १००० - x असं० X असे ० rt होंगे ? इस प्रकार वैराशिक करने पर - अद्धापल्य प्राप्त हुये । यहाँ ४१ = x असं० x असं● को ४१ करने पर २५ X ४ ल ल ४ १००० अथवा ( २५X ४ ) १०० १००००० एक लाख ) ल ल ४ ल कोड़ा कोड़ी पल्यों का एक सागर होता है X असं० x असं० से अपरिवर्तित १०० ल ल x १००० अथवा ( १०८० X दश कोड़ा कोड़ो पल्य प्राप्त हुये । इस प्रकार दश
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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