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गाथा :१०४
लोकसामान्याधिकार
इस प्रायत चतुरस्त्र क्षेत्र के समस्त प्रमाण को समान छेद
(हर) द्वारा जोड़ कर अपवर्तित करने से (६ ल ४६ लेx१०+१२ ल-१२ लx+ ६x६0 ४१.) - ६ ल ४ ६ ल x १० प्राप्त हुआ। यही ६ ल ४ ६ ल x १० आयत चतुरस्त्र क्षेत्र को भुजा का प्रमाण है । रुन्द्र २ ल के अर्थ भाग (१ल ) का वर्ग १ ल x १ ल होता है । यह आयतचतुरस्र क्षेत्र की कोटि का वर्ग है । भुजा (६ ल x ६ ल ४१०) और कोटि ( १ ल x १ल) का परस्पर में गुणा कर देने से पायत चतुरस्रक्षेत्र का क्षेत्रफल प्राप्त हो जाता है । वर्गात्मक राशि का गुणकार या भागहार बगरूप ही होता है, इसलिए { ( ६ ल ४ ६ ल ४ १ ) x ( ल ४१ ल ) -- ६ ल ल x ६ ल ल x १० } आयत चतुरस्रक्षेत्र का क्षेत्रफल ६ ल ल ४६ ल ल X१० प्राप्त हुआ।
एक योजन वृत्ताकार क्षेत्र का क्षेत्रफल ध्यास - व्यास x V३० अर्थात् ' xx V१० होता है । इसका बग: x x १० है, तथा लवगण समुद्र के क्षेत्र के क्षेत्रफल का वर्ग ६ ल ल x ६ ल ल x १० है । जबकि x x १० बर्गात्मक क्षेत्रफल का १ योजन व्यास वाला एक कुण्ड होता है, तब ६ ल ल ४६ ल ल ४१० वर्गात्मक क्षेत्रफल के एक योजन व्यास वाले कितने कुण्ड होंगे ? इस प्रकार के पैराशिक में xt x १. प्रमाण राशि से ६ ल ल x ६ ल ल x १० को भाजित कर इन्द्रित राशि में गुणा करने पर २४ ल ल ४२४ ल ल प्राप्त होते हैं । अथवा -( ६ ल ल ४६ल ल x१० } : {2 x x १०) = ६ ल ल x ६ ल ल ४१० x x x = २४ ल ल x २४ ल ल प्राप्त होते हैं। २४ ल ल x २४ ल ल का वर्गमूल २४ ल ल होता है। इसको १.०० वेष से गुणित करने पर घनफल २४ ल ल ४ १००० प्राप्त होता है। अर्थात् लवण समुद्र के घनफल में १ योजन वाले तथा १ योजन गहरे कुण्डों का प्रमाण – २४ ल ल x १००० प्राप्त होता है । अथ गुणकारान्तरं दर्शयति -
रोमहदं क्सजलोस्सेगे पणुवीससमयाचि । संपादं करिय हिदे केसेहिं सागरुप्पची ॥१४॥ रोमहतं पट केशजलोसे के पञ्चविंशसमया इति ।
मम्पातं कृत्वा हिते कैयौः सागरोत्पतिः ॥१०८।। रोम। प्रकुण्ड १ क रोम ४१. x x कुस २४ ल ल १००० इति श्रराशिकमागत रोमभिशितं २४ ल ल १०००, ४५ = x xx x पशजलोत्से के पविशतिसमयाश्चेत २४ ल ल १००१, ४१ - एतावद रोमजलोलेके किपन्तः सभया इति राशिकं कृत्वा प्रमाणीभूतषकेशरप