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हर
त्रिलोकमार
गाथा:१०३ .
६ ल ल प्राप्त हुए । ६ ल ल को दो स्थानों पर ( ६ ल ल, ६ ल ल ) स्थापित करना चाहिए । इनमें से एक स्थान के ६ ल ल को ३ से गुणित करने पर लवण समुद्र का स्थूल क्षेत्रफल १८ ल ल प्राप्त होता है । दूसरे स्थान पर स्थापित ६ ल ल का बर्ग कर १० से गुणित करने पर ६ ल ल x ६ ल ल x १० प्रान हुए । इन चाओं म) परस्पर गुरु) करने में जो लेध प्राप्त हो उसका वर्गमूल ही लवण समुद्र का सूक्ष्म क्षेत्रफल है।
लवण समुद्र का सूक्ष्म क्षेत्रफल चतुरन रूप से प्राप्त होता है। उसकी वामना कहते हैं :..
लवण समुद्र के वलय व्यास
):..
का ऊपर
छद
..
कर
3
1
.1...
..
"
फैला देने पर एक विषम चतुभुज
बन जाना है। गाथा ९६
के अनुसार मुख का सूक्ष्म प्रमाण १ ल x १ल x १० का वर्गमूल और भूमि का सूक्ष्म प्रमागा ५ ल x ५ ल x १७ का वर्गमूल है तथा रुन्द्र व्यास सहा कोटि २ ल प्रमाण है। मुख और भूमि के प्रमाण का वर्ग जोड़ देने पर ५ ल x ५ ल ५ १० + १ ल x १ल x १० --- ६ ल . ६ ल ४१० होना है। इसका आधा करने पर ल ल ४.१० मध्य फल प्राप्त हुआ। इस मध्य
२४२
___ फल को मध्य
.. .. ६८४ ६१.....
में रखकर
ध्वं भाग को मध्य से छपना
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चाहिए । म विषय बनुज का चतुरन अर्थात्
आयत चतुर्भुज बनाने के लिए ऊपर के दोनों खण्डों को विपरीत म से स्थापन करना चाहिए।