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गाथा1१०३
लोकसामान्याधिकार विशेषार्थ :-"मन्तायि सूयि जोग, सदगुणित्तु दुप्पद्धि किया।
तिगुणं दहकर रिण गुणं, बादर मुहम फलं बलमै" ॥१५॥ अर्थ :-अन्त की सूची और आदि की सूची को जोड़ने पर जो प्रमाण प्राप्त हो उसे इन्द्र भ्यास के आधे से गुणा करना चाहिए। इसका जो ध प्राप्त हो उसको दो स्थानों पर रख कर उनमें से एक को तीन से गुणा करने पर वृत्ताकार क्षेत्र का स्थूल क्षेत्रफल प्राप्त होता है और दूसरे को दश करणि (१० के वर्गमूल ) से गुणा करने पर वलयाकार का मूक्ष्म क्षेत्रफल होता है । अन्तरङ्ग एवं बाह्यादि सूची व्यास को दर्शाने वाला चित्रण :
मान - १ लाख - १ इञ्च
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ता---हा
--| वाह्य सूची व्यास
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लवण समुद्र ना बाह्यसुची ध्यास ५ लाख योजन है। लवण समुद्र का अन्तरङ्ग सूची व्याम १ लाख योजन है। लवण समुद्र का मध्यम सूची व्यास ३ लाख योजन है। लवण समुद्र की बाह्म परिधि ५ ला ४ ५ ला० x १७ का वर्गमूल है। । लवण समुद्र को अन्तरङ्ग परिधि १ ला० x १ ला० ४ १० का वर्गमूल है । लत्रण समुद्र की मध्यम परिधि ३ ला x ३ ला० x १० का वर्गमूल है । लवण समुद्र का कन्द सूची व्यास २ लाख योजन है।
५ल और १ ल को जोड़ने से (५.१) :: ६ ल प्राप्त होते हैं। रुन्द्र व्यास २ लाख योजन है जिसका प्राधा (२लx)= १ ल होता है । ६ ल को इस १ ल से गुणित करने पर ६४१ल