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________________ पाषा: १०२-१०३ लोक सामान्याधिकार उद्धारक रोम छिन्नमसंख्येयवर्षसमयः । अद्वारे तानि रोमाणि तावामानश्च तत्कालः ॥१०॥ उवा । उमारेक रोमाऽसंख्यातवर्षसमयः समं छिन्नं चेतवा तानि रोमाणि प्रसार पल्पत्य मन्तिा तपहरणकालश्च लावाव ॥१०१॥ अब अज्ञापल्य के काल का प्रमाण दर्शाते हैं - पायाचं :-उद्धारपल्य के रोमों में से प्रत्येक रोम के उतने खण्ड करना जितने कि असंच्यात वर्षों के समयों का प्रमाण है। इन समस्त रोम खण्डों का समूह ही अज्ञापल्य के रोमों का प्रमाण है। जितना अद्वापल्य के रोमों का प्रमाण है उतना ही अापल्य के समयों का प्रमाण है ॥१०॥ विशेषायें :-उद्धारपल्य के सम्पूर्ण रोमों में से प्रत्येक रोम के असंख्यात वर्षों के समय प्रभाग खण्ड करने से मद्धापल्य के रोम खण्डों का प्रमाण प्राप्त होता है, तथा अद्धापल्य के रोम खण्डों का जितना प्रमाण है, उतने ही समयों का एक अद्धापल्य होता है 1 अथवा – एक एक समय में एक एक रोम खण्ड ग्रहण करते हुए जितने काल में प्रद्धापल्य के समस्त रोम समाप्त हो जाय, उतना ही काल पदापल्य का है। यहां पर मध्यम असंख्यात प्रयोजनीय है। अथ सागरोपमस्वरूपं सूचयति - एदेसि पन्लाणं कोडाकोड़ी इवेज्ज दसगुणिदा। तं सागरोवमस्स दु हवेज्ज एक्कस्स परिमाणम् ।।१०२॥ एतयोः पल्पयोः काटीकोटी भवेत् दशगुणिता। तत् सागरोपमस्य तु भवेत् एकस्य परिमाणम् ।।१०२।। एथे । एतयोरखाराजारपल्पयोवंशगुणिता कोटोकोटो भवेद्यपि तथा विवक्षितपल्यं विवक्षितस्य एकसागरोपमस्य प्रमाणं भवति ॥१२॥ अब सागरोपम का स्वरूप सूचित करते हैं - गाथा:-इन दोनों पल्यों में से प्रत्येक को दश कोडाकोड़ी से गुणा करने पर विवक्षित ( अपने, अपने ) एक एक सागर का प्रमाण प्राप्त होता है ।।१०२।। विशेषार्य :-उद्धार पल्य में दस कोड़ाकोड़ी का गुणा करने से एक उद्धार सागर होता है तमा अढा पल्य में दस कोड़ाकोड़ी का गुणा करने से एक अद्धा सागर होता है। अथ सागरोपमसंशाया अन्वर्थतादर्शनार्थमाह - लवणंबुद्धिसुकुमफले चउरस्से एकजोयणस्सेव । मुहमफलेणवहरिदे बट्ट मुलं सहस्सवेहगुणं ॥१.३।। १ भवेत् (ब०, प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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