SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिलोकसार गाथा: १००-१०१ एक रोम १०० वर्ष के बाद निकाला जाता है तो ४५ अङ्क-प्रमाण रोम कितने वर्षों में निकाले जाएंगे? इस प्रकार राशिक कर जो वर्षों का प्रमाण प्राप्त हो उसके निम्न प्रकार से समय बनाने चाहिए - एक वर्ष के ३६० दिन, एक दिन के ३० मुहूतं. एक मुहूर्त के ३७५३ उच्छ् वरम, एक सच्छ बास की संख्यात आवली और एक आवली के जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समय होते हैं तो अपर राशिक द्वारा प्राप्त हुए वर्षों के कितने समय होंगे? इस प्रकार राशिक करने से जो समयों का प्रमाण प्राम हो वही व्यवहार पल्य के समयों की संख्या का प्रमाण है। उदारपल्यकालं दर्शयति - ववहारेयं रोमं छिण्णमसंखेज्जयामसमयेहि । उद्धारे ते रोमा तकालो तत्तियो चेव ॥१०॥ व्यवहारंक रोम छिन्नं असंख्येयवर्गसमयः । उद्धारे सानि रोमारिण तत्कालः तावान् चवः ।।१००|| अव । व्यवहारकोमासंख्येयवर्षसमयः समं छिन्नं चेत् तवा तानि रोमाणि उद्धारपल्मस्प भवन्ति । सरपहरणकासन तावान् उद्धारपत्यारोमसमान एव । प्रतिसमयमेकंकरोमालियत इति भाषः ॥१०॥" अब उद्धारपल्य के काल का प्रमाण दर्शाते हैं - गाथार्य :-व्यवहार पश्य के रोमों में से प्रत्येक रोम के उतने खण्ड करने चाहिए जितने कि असंख्यात वर्षों के समयों का प्रमाण है। इन समस्त रोम खण्डों का समूह ही उद्धारपल्प के रोमों का प्रमाण है तथा जितना उद्धारपल्य के रोमों का प्रमाण है, उतना ही उद्धारपल्य के समयों का प्रमाण है। विशेषार्थ:-पसंख्यात वर्षों के जितने समय है उतने उतने ग्यण्ड व्यवहार पल्य के प्रत्येक रोम के करना । जब समस्त रोमों के खण्ड हो चुकं तब उद्धारपल्य के रोमों का प्रमारग प्राप्त होगा। जितना प्रमाग उद्धारपल्य के रोमों का है, उतना ही प्रमाण उद्धारपन्य के ममयों का भी है। अथवा -- एक एक समय में एक एक रोम निकालते हुए जिनने समयों में उद्धारपन्य के सम्पूर्ण रोम खण्ड़ समाप्त हो उतने ही ममयों का एक उद्धार पत्य होता है। .. अथादारपल्यं निदर्शयति - उद्धारेयं रोम छिण्णमसंख्येज्जवाससमये । अदारे ते रोमा पत्तियमेचो य तरकालो ।। १०१।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy