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________________ त्रिलोकसार गाथा।९७-१८ गुणकार एवं भागहार वर्गात्मक ही होता है। इस न्यायानुसार ८ खण्डों में ८ के वर्ग अर्थात् ८४८ से गुणा किया गया है । इस प्रकार दश गुणित विष्कम्भ की वासना सिद्ध हुई। अथ सिद्धाञ्जमुच्चारयति - एकट्ठी पण्णट्ठी उणवीसट्ठारसेहिं संगुणिदा । विगुणणवसुण्णसहिया 'पन्लस्स दु रोमपरिसंखा ।।९७।। एकाष्टी पध्नषष्टी एकोनविंशावाद: संगुरिगता। द्विगुणनवशून्यसहिता एल्यस्य तु रोमपरिसंख्या ।।९७।। एकट्ठी । १८४४६७४४०७३७०६५५१६५६ x ६५५३६४१६४१८x१८ भूम्य इति सुगमं । परस्पर गुणन से प्राप्त हुए अङ्क बताते हैं -- गापार्ष:-एकट्टी, परणट्ठी, उन्नीस और अठारह का परस्पर गुणा करने से जो राशि उत्पन्न हो उसे १८ शून्यों से सहित करने पर पल्य के रोमों की संख्या प्राप्त हो जाती है ॥२७॥ विशेषार्थ:-गाथा ९६ की संख्याओं का संक्षिप्त गुणन-एकट्ठी (१८४४६७४४०७३७०९५५१६१६) xपण्णट्ठी ( ६५५३६ ) ४ उन्नीस ( १६ ) x अठारह ( १८ ) इनका परस्पर गुणा करने से जो राशि उत्पन्न हो उसे १८ बिन्दुओं ( शून्यों ) से युक्त करने पर जो प्रमाण उत्पन्न हो वही प्रमाण पल्प के रोमों का है। अथ सुगम गुणितफलं दर्शयति - वटलवणरोचगोनगनजरनगंकाससमघधमपरकधरं । विगुणणवसुण्णसहिया पन्लास दुरोमपरिसंखा ॥९८॥ वट ...................... द्विगुणनवान्यसहिता पल्यस्य तु रोमपरिसंख्या ॥९८॥ पर पत्र कहपय' इत्यादिना संख्या कयित।। ४१३४५२६३०३०१२०३१७७७४६५१२१९२०० ०००००००००००००००० पल्यस्य रोमसंख्या भवति ॥॥ परस्परा के गुणन से उत्पन्न हुआ प्रमाण रूप फल दिखाते हैं : गाया:-- (१). ४ (१), ल (३), व (४), ए (५), र (२), च (६), ग (३), न (०), ग (३), म (०), ज (e), २ (२), न (०), ग (३), क (१), स (७), स {७), स (७), प (४), ध (९), म (५), १ पमिदीपम रोम परिसखा (ब०, ५०)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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