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________________ पापा । ९६ लोकसामान्याधिकार इस कर्णकृति को आषा करने पर उसके दो अंश हो जाते हैं। इन अाँशों के पुनः अर्ध भाग करने पर चतुर्थांश / X प्राप्त होता है । चतुर्थाश का भी आधा करने पर भाठमां गंध प्राप्त हो जाता है। BHk.. उसमें से एक अष्टमांश SH को अलग स्थापित करना पाहिए। इस मष्टमांश की भुजा वि वि २ है, और कोटि वि वि २ है। भुज पोर कोटि इन दोनों का समान छेद करने पर भुज वि वि२४२४२ हो जाती है, और कोटि वि वि २ रहती है। भुज और कोटि को अर्थात् वि विx२४२४२, वि दि २ को जोड़ने पर अष्टमांश का प्रमाण वि वि १० प्राप्त होता है । जबकि एक मष्टमांश का प्रमाण वि वि १० है, तब ८ खण्डों का प्रमाण कितना होगा ? इसप्रकार राशिक कर इच्छाराशि ८४८ को फल राशिवि वि १० से गुणित कर प्रमाण राशि १ मे भाग देने पर वि वि १०४३ प्राप्त होते हैं। इन्हें ८ से अपवर्तित करने पर वि वि १० को प्राप्ति होती है। प्रोन् १० गुणित वर्गात्मक विष्कम्भ का वर्गमूल वृत्ताकार की परिधि है । वर्गरूप राशि का
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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