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________________ त्रिलोकसार गाथा ९६ X५००×५०० व्यवहार योजनों में ३३४५०० X ५०० x ५०० ७६८००० X ७६८०००७६८००० गुल हुए। एक अंगुल के ८ व १ यव के ८ तिल, एक तिल को लीख, १ लीख के कर्मभूमिज रोम, एक कर्मभूमि रोम के मध्यम भोगभूमिज रोम और १ भोगभूमिज रोम के ८ उत्तम भोगभूमिज रोम होते हैं। इन्हें धनात्मक करने पर ८ को संख्या (७३) २१ बार प्राप्त हुई । जबकि एक घनांगुल में १ घांगुल x ८ ( २१ बार ) प्रमाण रोम हैं, तब उपर्युक्त घांगुल में कितने कितने रोम होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर कुपड के रामों का प्रमाण ५ ० X 20. XX**X S&5000 Xuf5000 × 6&5000 X=X5 X=XXXXXSXSXSXSX EX XXXX ६८८६ ( का परस्पर गुणा करने से जो महाराशि उत्पन्न होती है छतने प्रमाण ) है । विष्कम्भ की वासना का निरूपण करते हैं : X :-- ९० एक योजन व्यास वाला एक गोल वाळा समचतुरख भुजकोटि भित्र O विवि २ = क्षेत्र है। इसका एक योजन प्रमाण प्राझ है ) । एक योजन विष्कम्भ का चिन्ह ( संहतानो ) "वि १" मान लेने पर समचतुरस्र क्षेत्र की जि१. क्षेत्र बनाना चाहिए ( इस चित्र का केवल समचतुरस्र क्षेत्र हो बि? समान होती हैं। इस समचतुरस्र क्षेत्र के करण कृति का प्रभारण प नि सुजवर्ग + कौटि वर्ग अर्थात् वि १ वि १ + वि १ x वि - विवि १ + विवि १ = होता है ( इस चित्र को पफ पंक्ति विवि २ की ही सूचक है ) ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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