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________________ गाथा ६६ लोकसामान्याधिकार प्र १५०० इ ३३ घनराः गुणकार माहारा घनात्मका भवन्ति ३३४५०० x ५०० ५०० । पुनरंगुल ७६८०००×७६८००० X ७६८००० य ८ तिल ८ शिक्षा कर्मभूमिजरोम जघन्य भोगभूमिजरोम मध्यमभोगभूमिवरोम उत्तमभोगभूमिजरोमादप्येवमेव क्रमेण राशिकं कृत्वा गुणयेत् । विष्कम्भस्य वासनां निरूपयति । एकयोजन वृचगुणा 'विवि १ विषि १ समास बि बि २' कर्णकृतिः तस्यामधितायां द्वितीयश: 'तस्त्रिषिते चतुर्थांश, मम खण्डं, सर्वकखण्डं गृहीत्वा भुलकोटयो: द्वाभ्यां समानखेवेन मेलनं कृत्वा एकखस्य एतावति फले प्रखण्डस्य कि सांराशे स्पकार भागहारी वर्गात्मको भवत इति न्यायेम इच्छाः वर्णरूपेण गुणकारी भवति । तयोर्गु कारभामहारयोर्वज्रावर्तने वशगुरि से विष्कम्भवासना अर्थात ॥६६॥ 11 पूर्व गाथा में परिधि का सविशेष" ऐसा विशेषण कहा गया है, अतः परिधि की सूक्ष्मता को जानने के लिए करण सूत्र कहते हैं : गाथार्थ :- व्यास के वर्ग को १० से गुणा करने पर जो प्रमाण प्राप्त होता है उसी का वर्गमूल वृत्ताकार क्षेत्र की सूक्ष्म परिधि होती है। परिधि को व्यास के चौथाई भाग से गुणा करने पर गोलक्षेत्र का क्षेत्रफल होता है। इसी क्षेत्रफल में गहराई का गुणा करने से कुण्ड का धनफल प्राप्त होता है ।। ९६ ।। ८६ ( विशेषा:- विष्कम्भ ( व्यास ) के वर्ग वि १४ व १ को १० गुणा करने पर वि १ x वि १x१० लब्ध प्राप्त हुआ। जिसका वर्गमूल ३३ होता है, इसे समच्छेद विधान द्वारा जोड़ने पर *+१==--- वृत्ताकार क्षेत्र की सूक्ष्म परिधि होती है। यहाँ कुण्ड का व्यास १ योजन है. इसका वर्ग ( १ यो० x १यो० ) == १ वर्ग योजन हुआ | इसमें १० का गुणा करने से ( १ वर्ग यो० x १० ) १० वर्ग योजन हुए । १० वर्ग योजन का वर्गमूल ३ : ) योजन हुआ, यहीं परिधि का सूक्ष्म प्रमाण है । ३ योजन परिधि को व्यास के चौथाई भाग से गुणा करने पर (* x 7 ) = ३३ वर्ग योजन कुण्ड का सूक्ष्म क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इस वर्ग योजन क्षेत्रफल को १ योजन गहराई से गुणित कर देने पर ( x १ यो० १ १३ घन योजन कुण्ड का सूक्ष्म घनफल प्राप्त होता है। यह सूक्ष्म क्षेत्रफल प्रमाण घन योजन स्वरूप है, अतः इसके व्यवहार धन योजन आदि करना चाहिए। व्यवहार योजन कैसे करना चाहिए ? उसे कहते हैं :- जबकि एक प्रमाण योजन क्षेत्र के ५०० व्यवहार योजन होते हैं, तब २१ प्रमाण योजनों के कितने व्यवहार योजन होंगे ? इस प्रकार राशिक करने पर प्रमा राशि १, फल राशि ५०० और इच्छा राशि ३४ हुई । 'घन राशि का गुगाकार या भागहार घनात्मक ही होता है' इस नियम के अनुसार को तीन बार ५०० से गुणा करने पर ५०० x ५००X अतः ४५०० ५०० व्यवहार वन योजन होते हैं। एक व्यवहार योजन में ७६८००० अंगुल होते हैं. १ पुनरप्यधितायां (प० - ) | १२ -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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