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________________ त्रिलोकसाय गाथा : ६५-९६ विशेषार्ष :-जिसने उत्तम भोगभूमि में जन्म लिया है और जो मात्र सात दिन की आयु का है ऐसे मेमने के रोमों को ग्रहण कर रोम के अनभाग के बराबर टुकड़े करना चाहिए तथा करोड़ों की संख्या में सञ्चित हुए उन रोम-खण्डों से कुपद्ध भरना चाहिए। तत्किमित्याह - जं जोयणवित्थिपणं तत्तिउणं परिरयेण सविसेस । तं जोयणमुन्धिद्धं पन्नं परिदोवमं गाम ।।९।। यत् योजन विस्तीर्ण तत् त्रिगुणं परिधिना सविशेषम् । तन् योजनमुद्विद्ध': पल्यं पलितोपमं नाम ॥१५॥ जंजो । यद्योजनविस्तीर्ण सत त्रिगुणं परिबिना सविशेष सूक्ष्मकलापात् योजनमुनि तत कुण्डलोमप्रमाणं पस्योपमं पलितोपमं वा' इति संशा ॥५॥ वह कुण्ड कैसा है सो बताते हैं - पापा:-वह कुण्ड एक योजन विस्तीर्ण ( व्यासदाला) है; उसकी परिधि विस्तार के तीन गुने से कुछ अधिक है, उसकी गहराई भी एक योजन है ऐसे विशाल कुण्ड में भरे हुए रोम खण्डों का जितना प्रमाण है, उसे पक्य अथवा पलितोपम कहते हैं ॥१५॥ - विशेषार्प:-वह कुण्ड एक योजन गहरा और एक योजन व्यास वाला है। उसकी परिधि तिगुने से कुछ अधिक है । ऐसे कुण्ड में भरे हुए उपयुक्त रोमों का जितना प्रमाण है, उतने रोम प्रमाण हो पल्य अथवा पलितोपम होता है। अथ परिधेः सविशेष इति विशेषणार्थ ज्ञापयवाह - विक्खंभवग्गदगुणकरणी वट्टस्स परिरयो होदि । विक्खंभचउभागे परिरयगुणिदे हवे गणियं ॥९६।। - 'विष्कम्भवर्गदशगुणकरणिः वृतस्य परिधिः भवति । विष्कम्भन्नतुर्भागे परिधिगुरिणते भवेत् गणितम् ॥१६।। विम । विष्कम्भव! (बि १xवि१) शरिणतः ( वि १xवि १४१०) करगिलप्रहणयोग्यराशिवेथिति मूलं गृहीरमा (३६) समानछेन मेलयित (+-) एवं सति वृत्तस्य सूक्ष्मपरिनिर्भवति । विष्कम्भवतुर्माशे (1) परिधिमा (A) पुणिते (1) धन गुणिते व (३) समस्तसूक्ष्मक्षेत्रफलं भवेत। एतत् लक्म क्षेत्रफल व्यवहारयोजनादिकं तमं । का एकप्रमाणयोजमक्षेत्रस्य पश्चशतव्यवहारयोजने सति ५०० एतावदप्रमाणयोजनक्षेत्रस्य ७ किमिति सम्मात्य । ति (., )
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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