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________________ २७ गाथा : ६३-६४ लोकसामान्याधिकार गापा:-पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगणी , जगत्प्रतर तथा लोक इस प्रकार उपमा प्रमाण आठ प्रकार का है ।।२।। विशेषा:-गाथार्थ सदृश ही है। अथ तेषां मध्ये पल्यभेदं स्वस्वविषयनिर्देशपूर्वकमाह - ववहारुद्धारद्धापन्ला विष्णेच हॉनि गायब्वा । संखा दीवसमृदा कम्मष्टिदि वण्णिदा जेहिं ।।९३। व्यवहारोद्धाराद्धापल्यानि त्रीण्येव भवन्ति ज्ञातव्यानि । संख्या द्वीपसमुद्राः कर्मस्थितयो वणिता यैः ।।१३।। क्यहार । व्यवहारोबाराडापल्यानीति पस्यामि कीयेव भवन्ति इति सातव्यानि । यः पल्यत्रयसपासण्यं संख्या द्वीपसमुत्राः कर्मस्थित्यावयाच परिणताः ॥३॥ अब अपने अपने विषयों के निर्देश सहित पल्य के भेदों का वर्णन करते हैं --- गाथार्य :-स्यवहार पल्य, उद्धार पल्य और अद्धा पत्य के भेद से पल्य तीन होते हैं। व्यवहार पल्य से संख्या का, उद्धार पल्य से द्वीप समुद्रों का और अज्ञापल्य से कमस्थिति का माप किया जाता है ॥१३॥ विशेषार्थ:-गाथार्थ सदृश ही है। अथ पत्यज्ञापनार्थमाह -- सप्तमजम्माषीणं सनदिणमंतरम्हि गहिदेहि । मण्णव सण्णिचिदं भरिदं बालग्गकोडीहिं ।।९४।। सत्तमजन्मात्रीनां सपदिनाभ्यन्तरे गृहीतः। संनष्टं संनिचितं भरितं बालाग्रकोटिभिः ।।१४।। सप्तम । सप्तमकम्मनामवीनो तविनाम्यन्तरे गृहीतंबालानकोनिभिः संनष्टं संविचितं भरित ॥४॥ पल्य का शान कराने के लिए कहते हैं - गाचार्य :-उत्तम भोग भूमि में जन्म लेने वाले मेमने (भेड-शावक) के जन्म से सात दिन के • भीतर तक के होमों को ग्रहण कर उनके अग्रभाग के बराबर खण्ड कर, सश्चित किए हुए करोड़ों रोमों से गडदा भरना चाहिए ।।१४।। . १ अतिशयेत मन सत्तमः उत्तमभोगभूमिः तत्र समुत्पन्नमेषाणा (टि., म.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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