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________________ ८४ त्रिलोकसार गाथा: बारायां तसहशा हिस्सवगंधारावानसहा राशमः शिरूपवर्ग धाराराशय एक नवनवणारं परस्पर गुरिणता सद्दिष्टा ॥८॥ जापार्ष:-द्विरुपवर्गपारामें अपने इष्ट स्थान पर जो जो राशि वर्गरूप दिखाई देती है द्विरुप घनाधनधाराके उसी उसी स्थान पर द्विरूपवर्गधारा के स्थान सदृश अर्थात् विरूपगंधारा की राशियों का हो नौ नी बार गुणा करने को कहा गया है ।।८।। विशेषा:-द्विरूपवर्गधारामें मभने विवक्षित स्थान पर जो जो राशियां वर्गरूप दिखाई देती है: द्विरूपधनाधनधारामें उसी उसी स्थान पर द्विरूपवर्गधारा के स्थान सदृश राशियों का अर्थात द्विरूपधारा को स्थानगत राशियों का ही परसर नौ नौ बार गुणा करने से द्विरूपधनाघनधारा के स्थानों को प्राप्ति होती है । जैसे :--- द्विरूपवर्गधारा में २-४ -१६ - २५६ - ६५५३६ राशियाँ हैं अतः विरूपधनाधनधारा में ५१२ - २६२१४४ - ६८७१९४७६७३६ -२५६-६५५३६५ राशियाँ प्राप्त होती हैं । अर्थात् द्विरूपवर्गधारा के प्रथम स्थान २ का धनाधन (२x२x२x२x२४२ x२x२x२) ५१२ द्विरूपचनापनधारा का प्रथम स्थान है और द्वितीय स्थान ४ का धनाघन २६२१४ द्विरूपचनापनधारा का दूसरा स्थान है; इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए। चविणेवमणतं ठाणं केवलचउल्थपददि । सगवगागुणं चरिमं तुरियादिपदाहदेण समं ।।८९।। घटित्ववमनन्तं स्थानं केवल चतुर्थपदवृन्दम् । स्वकवर्गगुणश्चरमः तुरीयादिपदाहतेन समः ।।८।। पति। ततो योगोत्कृधानिमागप्रविन्छेबत उपर्यनन्तस्थानानि घटित्वा केवलहानस्य ६५ = चतुर्षमूलं २ 'पुनस्तस्पधनः ८ स्वकीयवर्ग ६४ पुरिणतो ५१२ धनाधनषारायाश्चरमः । स च तुर्षअपममूलयोः परस्पराहत्या समः ।।।। पापा :- [ सर्वोत्कृष्ट योग के उत्कृष्ट अविभाग प्रतिच्छेदों के प्रमाण से ] अनन्त स्थान ऊपर जाकर केवल के पतुर्थवर्गमूल के घन को इसी चौथे वर्गमूल के धन के वर्ग से गुणा करने पर इस धारा का अन्तिम स्थान प्राप्त होता है। जो केवलज्ञान के चतुर्य और प्रथम वर्गमूल के परस्पर के गुणन से प्राप्त हुए लब्ध के सदृश है ।।८९॥ विशेषार्ष:-उपयुक्त उत्कृष्ट योग के उत्कृष्ट अविभाग प्रतिपदों के प्रमागा से अनन्त स्थान मागे जाकर केवलज्ञान (६५५३६) के चतुर्थवर्गमूल (२) के घन (८) को इसी चतुर्थवर्गमूल के धन के वर्ग (६४) से गुणा करने पर धनाधन धारा का अन्तिम स्थान प्राप्त है और वह स्थान केवल ज्ञान १ भूल २ पुनस्तस्य ८ तस्प वर्ग: पुनः तेन गुणितः स्वकीयवर्ग ६४ तेन गुणित: ( 40 )।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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