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गाथा : ८८
लोकसामान्याधिकार
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असंख्यात वर्ग स्थान आगे जाकर निगोद शरीरों की वर्गशलाकाएं उत्पन्न होती हैं उससे असंख्यान वर्ग स्थान आगे जाकर उसी के अर्धच्छेदों की उत्पत्ति होती है ओर उससे असंख्यात वर्ग स्थान आगे जाकर उसी के प्रथमवर्गमूल की प्राप्ति होती है। इस प्रथमवर्गमूल का एक वार वर्ग करने पर निगोद जीवों के समस्त शरीरों की उत्कृष्ट संख्या का प्रमाण प्राप्त होता है । अनन्त जीवों को जो क्षेत्र देता है। उसे निगोद कहते हैं । तथा निगोद कर्म से युक्त जीवों को निगोद जीव कहते हैं ।
निगोद शरीरों के प्रमाण से प्रख्यात वर्ग स्थान आगे जाकर निगोदकाय स्थिति की वर्गशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। उससे असंख्यात वर्गस्थान आगे जाकर उसी के अच्छेद उत्पन्न होते हैं और उससे असंख्यात वर्गस्थान आगे जाकर उसी का प्रथमवर्गमूल प्राप्त होता है। इस प्रथम वर्गमूल का एक बार वर्ग करने पर निगोदकायस्थिति का प्रमाण प्राप्त होता है ।
निगोदकस्थिति किस प्रकार है १ यदि ऐसा पूछते हो तो आचार्य कहते हैं कि यहाँ पर निगोदकाय स्थिति ऐसा कहने पर एक जीव का उत्कृष्ट रूप से निगोद में रहने का काल ग्रहण नहीं करना चाहिए कारण कि एक जीव इतर निगोद में भी ढाई पुद्गल परिवर्तन काल तक रहता है जी अनन्तकाला है। तो फिर किस्म करना चाहिए ?
निगोद शरीर रूप से परिणत हुए मुद्गल परमाणुओं का उस आकार को छोड़े बिना उत्कृष्ट काल तक निगोद शरीरपने से अवस्थित रहने का नाम निगोदकाय स्थिति है। यहाँ निगोदकाय स्थिति से उस उत्कट काल के समयों का ग्रहण करना चाहिये ।
निगोदकाय स्थिति के प्रमारग से असंख्यात लोक प्रमाण वर्गस्थान ऊपर चढ़ कर सर्वोत्कृष्ट योग के उत्कृष्ट अविभाग प्रनिदों की वर्गशलाकाएं उत्पन्न होती हैं। उससे असंख्यात लोक प्रमाण वर्ग स्थान आगे जाकर उसी के अर्थच्छेद प्राप्त होते हैं। तथा उससे असंख्यात लोक प्रमाण वर्गस्थान आगे जाकर उसी कर प्रथम वर्गमूल उत्पन्न होता है। इसका एक बार वर्ग करने पर सर्वोत्कृष्ट योग के उत्कृष्ट विभाग प्रतिच्छेदों का प्रमाण प्राप्त होता है ।
कर्मा
की शक्ति विशेष को योग कहते हैं । तथा कर्माकर्षण की शक्ति के अविभाग अंश को अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । यह प्रमाण इसी योग के अविभागप्रतिच्छेदों का है।
जो जो रामी दिस्सदि बिरूवर तद्वाणे तस्सरिसा घणाघणे
सगिठाणम्हि | णवणवदिट्ठा ||८८ ||
यो यो राशिः ह्रयते द्विरुपवर्गे स्ववेष्टस्थाने ।
तत्स्थाने तत्सदृशा घनाघने नव नव उद्दिष्टाः ॥
जो पियारा स्वकीयेदृस्यामे विवक्षितस्थाने यो यो राशि इसे सस्थामे घनाघन