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परम पू० १०८ श्री अजितसागरजी महाराज, श्री रखनचन्द्रजी मुख्तार, श्री डॉ. पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर ने बड़े परिधम पूर्वक किया। उसी समय जोधपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी प्राध्यापक श्रीचेतनप्रकाश पाटनो और श्रीनीरज मंन एम.ए. सतना वाले भी वहां उपस्थित थे। आप दोनों का भी सराहनीय सहयोग प्राव हुआ। पुरानी प्रतियोंके एवं मानस्तम्भ आदिक फोटो श्री नीरजजी जनके सौजन्य से ही प्राप्त हुए हैं। सराहनीय अनेक सहयोगोंके साथ साथ संस्कृत की प्रेस कापोश्रोचेतनप्रकाशजी ने की है। हा०प० पन्नालालजो साहित्याचार्य ने हिन्दी प्रेस मंदर का आद्योपान्त निरीक्षण कर स्वर ध्य जन जन्य बृटियों का बयोधम करने में अपना बहुमूल्प समय लगाया है।
श्री विमलप्रकाशजी ड्राफ्टमेन, रामगंज अजमेर वालों ने प्रेस कापी के आधार से ब्लॉक बनने ग्य करीब ४०-४५ चित्र निवाई पाकर तैयार किये थे। तपा श्री नेमिचन्द्रजी गंगवाल निवाई वालों ने शेष सभी चित्र बड़े परिश्रम एवं लगन पूर्वक निरपेक्ष भाव से तैयार करने में जो उदारता प्रगट को है वह यथार्थ में सराहनीय है।
इसप्रकार जिन जिन भध्यात्माओं ने इस महान ज्ञानोपकरण में अपना हार्दिक सहयोग प्रदान किया है उन्हें परम्परया के बलज्ञान को अप्ति अवश्यमेव होगी ऐसा मेरा विश्वास है ।
श्रीमन्नेपिन्द्र-सिद्धान्त चक्रवति-विरचित त्रिलोकसार को संस्कृत टीका श्रीम माधवचन्द्रविध देव कृत है। इसी टीका का हिन्दो में रूपान्तर किया गया है जिसे टीकाथ नाम न देकर विशेषाथं संज्ञा दी गई है। वैसे जहाँ तक शक्य हआ है संस्कृत टीका का अक्षरशः अर्थ किया गया है ( विषय स्पष्ट करने की दृषि से कहीं कहीं विशेष भी किखना पड़ा है। किन्तु संस्कृत का पूरा ज्ञान न होने से अक्षरशः अनुवाद में कमी रहने की सम्भावना यो अतः इसे टीका संज्ञा न देकर विशेषार्थ संज्ञा दी गई है।
प्रलोक्य के प्रमेयों को आत्मसात कर लेने के कारण यह ग्रन्थ जितना महान है गणित के कारण उतना ही क्लिष्ट है और यहाँ मेरी बुद्धि अत्यन्त मन्दतम है अतः इममें त्रुटियाँ होना सम्भव हो नहीं बल्कि स्वाभाविक है अतः गुरुजनों एवं विद्वज्जनों में यही अनुरोध है कि मेरे प्रमाद या अज्ञान से उत्पन्न हुई त्रुटियों का संशोधन करते हुए ही ग्रन्थ के अन्तस्तत्त्व (सार) को हृदयंगत कर इने अपने पात्म कल्याण का साधन बनावें।
मंतिम:-जिस गुरु भक्ति रूपी मौका के अवलम्बन से इस त्रिलोकसार रूपी महार्णव को पाय कर सकी है वही भक्ति रूपी नोका शीघ्रातिशीघ्र भवार्णव को पार करने में सहयोगी हो इसी सद्भावना पूर्वक पूज्य गुरुजनों के पवित्र चरणारविन्दों में त्रियोग शुद्धि पूर्वक त्रिकाल नमोऽस्तु । नमोऽस्तु !! नमोऽस्तु !!!
- मार्यिका विशुद्धमति