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________________ ७२ त्रिलोकसार गाथा : ७६-८० स्थान आगे जाकर सवकाश का प्रथम वर्गमूल प्राप्त होता है। इस प्रथम मूलका एक बार वर्ग:करने पर सर्वाकाशकी उत्पत्ति होती है । अर्थात् - लम्बे, चौड़े और ऊँचे ऐसे सबंधनरूप आकाशके प्रदेशोंका प्रमाण प्राप्त होता है। संखमसंखमण वग्गाणं कमेण गंतूण । संखासखाणताणुप्पत्ती होदि सव्वस्थ ॥७९।। संख्यमसंख्यमनन्तं वर्गस्थान क्रमेण गत्वा । संख्यासंख्यानन्तानामुत्पत्तिः भवति सर्वत्र ॥७९।। संखम । दिकवारासंख्यातबधम्पपर्यन्तं संख्यासवर्गस्थानानि गत्वा तदुपरि विकासमन्तजघन्य पर्यन्तमसंख्यातवर्गस्थानानि गत्वा तदुपरि केबलझानपर्यन मनन्तवर्गस्थानानि गया तत्र तत्र - बारायां पधासंख्यं संस्पातासंतानतामा शीतामुपसिभवति सर्वत्र ॥७९॥ गाषा :-तीनों धारामाम क्रम संख्यास, सास और जवर्ग स्थान आगे जाकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त की उत्पत्ति होती है ।।७९।। विशेषा:-जघन्य असंख्यातासंख्यातरूप राशि पर्यन्त तो संख्यात वर्गस्थान आगे जाते हैं; इसके ऊपर जघन्य अनन्तानन्तरूप राशि पर्यन्त असंख्यात वर्गस्थान आगे जाते हैं। इसके ऊपर केवलज्ञानपर्यन्त अनन्त वर्गस्थान आगे जाते हैं। उन उन वर्भधाराओं में यथाक्रम से संख्यात, असंख्यात और मनन्तरूप राशियों की उत्पत्ति होती है। यह नियम तीनों धाराओं के लिए है। जत्थुद्देसे जायदि जो जो रासी विरूपधाराए । घणरूपे तसे उपजदि तस्स तस्म घणो ||८०॥ पत्रोद्देशे जायते यो यो राशिः द्विरूपधारायां । घनरूपे तह शे उत्पद्यते तस्य तस्य घनः ।।८० अस्युह से । पत्रोद्देशे विरुपगंधारामा यो यो राशि यते इरूपचनपाराया तहशे तस्य तस्य मेधा उत्पते ॥an गापार्ष:--द्विरूपवर्गभारामें जिस स्थान पर जो जो राशि उत्पन्न होती है - द्विरूपधनधारामें उसी उसी स्थान पर उसी को घनरूपराशिकी उत्पत्ति होती है ।।८०॥ - विशेषार्थ:-द्विरूपवर्गधारामें जिस स्थान पर जो जो राशि उत्पन्न होती है दिरूपयनधारा में उसी उसी स्थान पर उसीकी घनरूप राणि उपलब्ध होती है। जैसे -- द्विरूपवर्गधारामैं २-४-१६ --२५६-६५४३६-बादाल-एकट्ठी हैं और द्विरूपवनधारामें ८-६४-४०१६–४०९६२-४०९६४ ४०९६-४०९६" हैं। अभिप्राय यह है कि द्विरूपवर्गपारामें जो जो राशियाँ हैं, उनके घनसे हो द्विरूपधनधारा की उत्पत्ति होती है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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