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गाथा! ७८
लोकसामान्याधिकार
तो यहाँ ४ का धन ६४ उत्पन्न हुआ है । भावली (४)के धन (६४) का एक वार वर्ग करने से आवलो के वर्ग स्वरूप प्रतरावली (४४४ - १९) का घन (१६४१६४१६) =४०९६ उत्पन्न होता है।
पन्लघणं बिंदंगुलजगसेढीलोयपदरजीवणं ।
तत्तो पढमं मूलं मन्यागासं च जाणेो ।१७८।। पल्मधनं वृन्दांगुलजगच्छुणीलोकप्रतरजीवधनम् ।
ततः प्रथमं मूलं सर्वाकाशं च जानीहि ||७|| पल्ल । Aaisसंख्यातस्थानानि गरवा वर्गशलाका, ततोऽसंख्यातस्थानानि परवा मधुच्छेवा, ततोऽसंख्यात स्थानामि गया प्रथममूलं तस्मिन्नेकवारं पगिते पल्पधनमुत्पद्यते । ततोऽसंख्यातापानानि पस्या धनागुलमुत्पद्यते । प्रा नववि को शामिमानिका गिलाद ससाकादीनाममावः । ततोऽसंख्यातस्थामानि गया जगण्ो, रिंगमस्पद्यते, प्रत्रापि उपज गीति निविधवात मार्गशलाकादीनामभावः । तस्यामेकवार वगितायां जगत्पतर उत्पद्यते । ततोऽनन्तपानानि गत्वा वर्गशलाकाः, ततोऽनन्तस्थानानि गया मण्येवाः, ततोऽनन्तस्थानानि गत्वा प्रथममूलं, तस्मिन्नेकवार गिते जीवराशेधन जस्पद्यते । उप्पअधोति निषियत्वापत्र वर्गशनाकापीनामभावः। सतोऽमन्तस्पानानि स्वा प्रथममूसं तस्मिन्नेकवार गिते सकिाशं व जामोहि ॥७॥
पापार्य :-प्रतरावलीके घनसे आगे आगे पल्य का घन, घनांगुल, जगपणी , जगत्प्रत र, जीव राशिका धन, सर्वाकागका प्रथमवर्गमूल और सब किाश की प्राप्ति होती है ॥७॥
विशेषार्थ :-प्रतरावलीके घनसे असंख्यात स्थान आगे जाकर पल्यको वर्गशलाकाओं का घन प्राप्त होता है। उससे असंख्यात स्थान आगे जाकर उसीके अपिछेदों का घन और उससे असंख्यात स्थान आगे जाकर उसी पत्यके प्रथम वर्गमूल का धन प्राप्त होता है। उस प्रथममूलके घनका एक वार वर्ग करने से पल्यका धन प्रान होता है।
पल्यके घन से प्रसंख्यात स्थान आगे जाकर धनांगुलकी प्राप्ति होती है। उप्पजदि जो राशि -- ." सूत्रगाथा ७३ के अनुसार धनांगुलकी वर्गशलाकाएं और अश्छेिद इस द्विरूपधन धारामें नहीं मिलेंगे, क्योंकि यह राशि विरलन-देय विधान से उत्पन्न हुई है। घनागुलमे असंख्यात स्थान आगे जाकर जगच्छणीकी प्राप्ति होती है । उपयुक्त नियमानुसार जमरणीकी भी वर्गशलाकादि इस राशिमें नहीं मिलंगे । जगरणी का एक वार वर्ग करने पर जगत्तर उत्पन्न होता है। जगत्प्रतर मे अनन्तस्थान आगे जाकर जीवराशिकी बर्गशलाकाओ का घन, उससे अनन्तस्थान आगे जाकर उसी के अर्धच्छेदों का धन और उससे अनन्त स्थान आगे ज कर उसीके प्रथम मूलका धन प्राप्त होता है। इस प्रथममूल का एक वार वर्ग करने पर जीवराशिके घन की उत्पत्ति होती है । उपजदि जो रासि ......... (गा.७३ के) सूत्रानुसार सर्वाकाशके वर्गशलाकादिके घनका इस धारामें अभाव है, अत; जीवराशिके घनसे अनम्त