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________________ पाया : ७६ लोकसामान्याधिकार अथ वर्गशलाकादयोः स्वरूपमाह ૬૨ गवारा षमालागा रामिस्स अद्धछेदस्य / मद्धिदवारा वा खलु दलवारा होति मद्धविदी ।। ७६ ।। वर्गितवारा वर्गथलाका राशेः अर्द्धच्छेदस्य । अधितवारा वा खलु दलवारा भवन्ति अर्थच्छेदाः ॥७६॥ I बग्गव । शशेवेगितषारा वर्गशलाका, इयं व्याप्तिरपि पाराश्रये । प्रच्छेवस्य प्रतिवा वर्गशलाका, इयं व्याप्तिः विरुपवर्गपारायामेव । राशेवंनवारा प्रच्छेदाः भवन्ति इयं व्याप्तिरवि भाराश्रये ॥७६॥ वर्गशलाका और अर्धच्छेदका रूप गावार्थ : - राशिके वर्गिलवार अर्थात् जितने बार वर्ग करने से राशि उत्पन्न होती है, उतने बार वर्गशलाकाएं कहलाती हैं अथवा अच्छेद के अर्धच्छेद वर्गशलाकाएं कहलाती हैं। राशिके जितनी बार अर्थ करते करते एक अ रह जाए. वे वार अच्छेद कहलाते हैं ॥ ७६ ॥ -- विशेषार्थ :- दो के वर्ग से प्रारम्भ कर पूर्व पूर्व का जितनी दार वर्ग करने पर विवक्षित राशि उत्पन्न हो उस राशिके वे वर्गितवार वर्गशलाका कहलाते हैं। जैसे :- दो का एक वार वर्ग करने से चार (२x२ - ४ ) की उत्पत्ति हुई अतः ४ की एक वर्गशलाका कहलाई । १६ की उत्पत्तिके लिये दो वार वर्ग [ (२x२=४) ४४४ = १६ ) ] किया जाता है, अतः १६ को दो वर्गशलाकाएं हुई । २५६ के लिये तीन वार वर्ग ( ( २x२=४ (४४४ = १६) (१६४१६ - २५६ ) ] किया जायगा इसलिये २५६ की वर्गशलाकाएं ३ होंगी। यह नियम तीनों धाराओं में लागू होता है। विशेषता इतनी है कि द्विरूपधनधारा में दो के धन से प्रारम्भ कर पूर्व पूर्व का जितनी वार वर्ग किया जायगा उतनी वर्गशलाकाएँ होंगी। जैसे-दो का घन है, अतः ८८६४ (धन धारा का दूसरा स्थान) की एक वर्गशलाका और ६४x६४ = ४०९६ की दो वर्गशलाकाएं हुईं। कारण कि ८ घनरूप संख्या का दो वार वर्ग किया तब ४०९६ राशि को उत्पत्ति हुई है । इसोप्रकार धनाधन धारामें दो का घनाघन (२४२२४२४२४२४२x२ x २ ) = ५१२ है, जो इस धाराका प्रथम स्थान है । इस ५१२ का वर्ग (५१२४५१२) २६२१४४ हुआ । इसकी एक वर्गशलाका हुई, कारण कि घनाघन रूप ५१२ संख्या का एक बार वर्ग करने पर २६२१४४ राशि की उत्पत्ति हुई है । यह नियम तीनों धाराओंके लिए है । अथवा : - विवक्षित राशि अर्धयों के जितने अर्धच्छंद होते हैं, उतनी ही उस राशि को वर्गशलाकाएं होती हैं। जैसे- २५६ के अर्थच्छेद ८ और के अच्छेद ३ हृये मतः २५६ की तीन शलाकाएं हुई। यह नियम मात्र द्विरूप वर्गधारा में ही हैं। अन्य दो धाराओं में नहीं है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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