________________
..
त्रिलोकसार
गाथा: ७५
ar | वर्गशलाका रूपाधिकाः स्वस्याने स्वकीयधारायां परस्मिन् स्थाने परधारायां स्वसमानाः स्वस्थवर्णशलाकामात्रं द्विकं परस्पराहतं चेद राशेरच्छेवाः भवन्ति । इयं व्याप्तिद्विपवर्गपारायामेव म द्विरूपात द्विरूपघनाघनधारयोः सच्छेदमात्रे डिके परस्पर गुणिते सहित राशिभवति । इयं व्याप्तिरात्रयेऽपि ॥ ७५ ॥
9
वर्गशकाओं की अधिकयता एवं साहय्यता का विधान
६८
पापा: स्वभावापेक्षा वर्गलाई एक सही होती हैं ।
11
और परस्थानापेक्षा अपने (स्वस्थान )
अपनी वर्गशलाका प्रमाण दुवा रखकर परस्पर गुणा करने से अर्थच्छेद तथा रात्रिके जितने अच्छे हैं, उतने दुवा रखकर परस्पर गुग्गा करनेसे राशिकी प्राप्ति होती है ॥७५॥
विशेषार्थ :- वर्गस्थानसे ऊपर के वर्गस्थान को वर्गशलाकाएं स्वस्थानमें नियमसे एक अधिक होती हैं, तथा परस्थान में अपने सह ही होती हैं। जैसे :- द्विरूपवर्गधाराका प्रथम स्थान (२ का वर्ग) ४ है, दूसरा वर्गस्थान १६ और तीसरा वगंस्थान २५६ है । यहाँ प्रथम स्थान ४ की मंशलाका १, दूसरे स्थान की दो और तीसरे स्थानकी हैं, अर्थात् एक एक की वृद्धि को लिये हुए हैं। द्विपत्र गंधारा जैसे:-- दो के वर्ग ४ को १ वर्गगलाकर और ४ के वर्ग १६ की २ वर्गशलाकाएं होती है, उसीप्रकार द्विरूपधनधारा के घन ६४ की एक वर्गशलाका तथा ६४ के वर्ग ४०९६ की दो वर्गालाकाएं होती हैं । द्विरूपघनाघनधारा ५१२ के वर्ग २६२१४४ की एक वर्गका और २६२१४४ के वर्ग को दो काएं होती हैं । इसप्रकार परस्थान में वर्गशलाकाएं समान होती हैं ।
८
अच्छेद निकालने का नियम :- जितनी वर्गशलाकाएँ हैं, उतनी बार २ लिखकर परस्पर में गुणा करने से उसी राशिके अर्धच्छेद प्राप्त हो जाते हैं । जैसे :- २५६ की ३ वर्गशलाकाएं हैं। अतः २x२x२=८ अर्धच्छेद प्राप्त हुए (२२६ के आठ अर्धच्छेद होते है) । यह नियम केवल द्विरूपवर्गधारा के लिए ही है, द्विरूप घनधारा और द्विरूपघनाघनधाराके लिए नहीं है ।
१ विके द्विके ( ब० ) ।
राशि निकालने का नियम :- राशिके जितने अच्छेद होते है, उनतीबार २ लिखकर परस्पर गुणा करने से विवक्षित राशि प्राप्त होती है । जैसे :- २५६ के = प्रच्छेद हैं, अतः बार ), २×२×१×२×२४२x२४२ == २५६ विवक्षित राशि प्राप्त हो गई। यह नियम तीनों धाराओके लिए है ।